वैदिक इंडेक्स | Vaidik Index -1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अजिर | ( १७ ) [ अतिथि-ग्व अभजिर--यष् पश्चविंश घाह्मण' के सर्पो्सव के भवसर पर सुब्रह्मण्य पुरोहित था | । १२५ १५ । देखिये वेवरः इन्डिशे स्टूडियन १, ३५ । अजीगर्त सौयवत--ऐतरेय ब्राह्मण” की प्रसिद्ध कथा में शुनःशेप के पिता का नाम है जहाँ वेबररके अनुसार यद उत्त अवसर के लिये ही भाविप्कृत किया गया है । १ ७ १५, १७, तु० की° शाद्भायन श्रीत | २ दग्धे स्टूडियन १, ४६०; रो : सेन्ट सूत्र २५ १९। पीटसंब्रगं कोश व० स्था०। अज्येयता --देखिये त्राह्मण अखणीकिन मौन--कौषीतकि वाद्यण१ मं इनका संस्कारों के अधिकारी विद्धान्‌ तथा जावाल्ल और चित्रगौश्रायणि अथवा गौश्र के समकालीन के रुप में उदलेख है । ॐ २३२ ५1 अगु--वाजसनेयि संहिता भौर बृहदारण्यक उपनिपद्र मे यह एक दपित अनाज, कदाचित्‌ एव्र ए9111866्पा0 का नाम है । > १८. १२; * २६ 3, १३ (काण्व) जहौ द्विवेदी की टिप्पणी भी देखिये । द्त्तिथि--अथर्ववेद* का एक सूक्त भातिथ्य-सत्कार के गुर्णों की महिमा का विस्तृत चणन करता है । अतिथि को ग्रहपति के पहले हो भोजन कराना छोर उसके लिये जल की व्यवस्था करना चादिये, इत्यादि । तैत्तिरीय उपनिषद्‌ू* भी “गतिथि-देव” व्याह्हति का प्रयोग करते हुये आतिथ्य सत्कार के महर्व पर जोर देता है। ऐतरेय भारण्यक में कहा गया है कि केवल साधुजन ( जच्छ खोग) ही भातिध्य खरकार के योग्य होते हैं। भतिधियों को उपहार देना सरकार” का एक नियमित शग था भौर अतिथि-समभ्मान^ में नियमित रूप से गोचध किया जाता था । ध ९ ६। ~ तु० की०ः ब्लूमफील्ड ; अमेरिकन = १९ ११, २] जनंल ऑफ फाइलौलोजी १७, ४२६; ही १,१७.१९६. + दिलेव्रान्ट : रिचुअल लिटरेचर, ७९ । दातपथ बाह्मण ७ ३,२, १। ्मतिधि-्व--यह नाम ऋग्वेद मे वहुधा आता है और प्रायः सभी अवसरो पर-एकही राजाके ख्ये प्रयुक्त हुआ दै, अन्यथा जिसका नाम न (१ २व्‌०इ्‌०




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