वैदिक इंडेक्स | Vaidik Index -1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
25 MB
कुल पष्ठ :
626
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)अजिर | ( १७ ) [ अतिथि-ग्व
अभजिर--यष् पश्चविंश घाह्मण' के सर्पो्सव के भवसर पर सुब्रह्मण्य
पुरोहित था | ।
१२५ १५ । देखिये वेवरः इन्डिशे स्टूडियन १, ३५ ।
अजीगर्त सौयवत--ऐतरेय ब्राह्मण” की प्रसिद्ध कथा में शुनःशेप के
पिता का नाम है जहाँ वेबररके अनुसार यद उत्त अवसर के लिये ही भाविप्कृत
किया गया है ।
१
७ १५, १७, तु० की° शाद्भायन श्रीत | २ दग्धे स्टूडियन १, ४६०; रो : सेन्ट
सूत्र २५ १९। पीटसंब्रगं कोश व० स्था०।
अज्येयता --देखिये त्राह्मण
अखणीकिन मौन--कौषीतकि वाद्यण१ मं इनका संस्कारों के अधिकारी
विद्धान् तथा जावाल्ल और चित्रगौश्रायणि अथवा गौश्र के समकालीन के
रुप में उदलेख है ।
ॐ २३२ ५1
अगु--वाजसनेयि संहिता भौर बृहदारण्यक उपनिपद्र मे यह एक
दपित अनाज, कदाचित् एव्र ए9111866्पा0 का नाम है ।
> १८. १२;
* २६ 3, १३ (काण्व) जहौ द्विवेदी की टिप्पणी भी देखिये ।
द्त्तिथि--अथर्ववेद* का एक सूक्त भातिथ्य-सत्कार के गुर्णों की महिमा का
विस्तृत चणन करता है । अतिथि को ग्रहपति के पहले हो भोजन कराना छोर
उसके लिये जल की व्यवस्था करना चादिये, इत्यादि । तैत्तिरीय उपनिषद्ू*
भी “गतिथि-देव” व्याह्हति का प्रयोग करते हुये आतिथ्य सत्कार के महर्व
पर जोर देता है। ऐतरेय भारण्यक में कहा गया है कि केवल साधुजन
( जच्छ खोग) ही भातिध्य खरकार के योग्य होते हैं। भतिधियों को उपहार
देना सरकार” का एक नियमित शग था भौर अतिथि-समभ्मान^ में नियमित
रूप से गोचध किया जाता था ।
ध ९ ६। ~ तु० की०ः ब्लूमफील्ड ; अमेरिकन
= १९ ११, २] जनंल ऑफ फाइलौलोजी १७, ४२६;
ही १,१७.१९६. + दिलेव्रान्ट : रिचुअल लिटरेचर, ७९ ।
दातपथ बाह्मण ७ ३,२, १।
्मतिधि-्व--यह नाम ऋग्वेद मे वहुधा आता है और प्रायः सभी
अवसरो पर-एकही राजाके ख्ये प्रयुक्त हुआ दै, अन्यथा जिसका नाम
न (१
२व्०इ्०
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