दशाश्व मेघ | Dashashv Megh
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
134
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कृ |
नाना
( ४ फ)
विचार नाट्ययहों के निर्माण में वरावर रहता था; चाहे ये गाँगों में
वर्ते, नगर मे, तीर्थो में या राजधानियों में । दर्शकों की रुचि और
स्थान विशेष के साधन के अ्रनुसार वड़े या छोटे आकार के नाय
चनते थे। यज्ञों और दूसरे घार्मिक अवसरों पर नाटक देखना धर्म
माना गया था ।
जिस विपय का; जिस वस्तु या परिस्थिति का असिनय नाटक में
करना हो उसकी स्वासाविकता ही सारतीय नाटक का चरम ल्य रही
है। नाव्यशास्र का विस्तृत विवरण इसी ओर संकेत करता है ।
सरगुजा करी रमगद् पहाड़ी की युष्म, उदयगिरि की रानी शरीर गरे
गुफा, कालिदास के काव्यों में 'द्रीएहा” श्रौर 'शिलाविश्म” उस युग
की नाथ्यशालायें हैं । सारतीय संगीत, काव्य श्रौर नाटक का सम्बन्ध
गरस्पर गहरा रहा है । इन सब का मूल सोत वैदिक और उससे भी
पहले के काल में सोहेंजोदड़ो और हड़प्ा की साव सूर्तियों में बहुत
गहरे जा पहुँचा है । अवर्पए और सहामारी की सयानक परिस्थिति
सें थी जहाँ गीत श्रन्नात काल से गाया जाता है वहाँ नाटक या कोई
सी कला किसी से ऋण ले कर नहीं; अपने स्वाभाविक काम में
विकसित हुईं थी ।
रुचि और कालभेद को ध्यान में रख कर जहाँ तक वन पड है
इस नाटक का सम्बन्ध मैंने संस्कृत नाटक के पुराने सिद्धान्तों के . साथ
जोड़ना चाहा है ऊपरी आकार इसका, ाधुनिक है पर सावलोक में
रत के विद्ान्तो के अनुसरण भर का प्रयत्न मेरा रहा है । इस कार्य
में मुखे कितनी सफलता मिली है इसकी चिन्ता थी मुखते इसलिए नहीं
होगी कि कर्म मुखे करना था पल कर शा से कुद वनने को नही है।
र
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