रणभेरी | Ran Bheri

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Ran Bheri by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अन ` {१९ लेखा-( शिवजी लेकर ) रास; राम) सम ! महेश का इतना अपमान ? यवोध बच्चे, तुम्दारी नस-नस में शरारत समाइ रहती है । छुन्रसाल--यह शिवजी दहै मा! -लेखा--दा, शिवजी । जाने कुद्धं जानता ही नहीं | छुन्नसाल-देखो माँ, तुम्हें कितने शिवजी चाहिए ? तुम नको पूजा करती हो न ? लेखा--चुप रह । आने दे च्राज्ञ चम्पत को । छुत्रसाल - पिताजी कहौ गयं ह्‌. मा! लेखा- शिकार खेलने । ( जाती ह ) छत्रसाल-(तलवार को चूमते हुए) नहीं, नदी; नाराज न होना । देखो भवानी, हम तुम्हें बड़े-बड़े शिवजी ला देंगे | (नेपथ्य से गान ) रिस रहे दो घाव बाबा* दचसाल--( सुनकर ) कोन गाता है ? ( प्रस्थान ) ( शीतला का गाते हुए प्रचेश ) गान रिस रहे दो घाव वाचा) ये न दो नयना हमारे, ये न नीलम के सितारे, येतोदो कङ्कर जगत से * हाय सिर पर तान मारे निवलों का भाल फोड़ा--यह धनी का चाव वावा, रिस रहे दो घाव वाचा ॥। (पीछे से सारन्धा और छत्रेसाल का प्रवेश । वे दोनों एक पारश्व में खड़े होकर गाना सुनते है । दुःख दरदो की कहानी, यह्‌ हमारी जिन्दगानी;




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