बाईसवीं सदी | baisavi Sadi

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baisavi Sadi  by राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोई जीव-जन्तु भीतर जाकर कोई चीज खराब न कर दे, श्२ बाईसवीं सदी 'थे | उन प्ष्ठोंके पढ़नेसे ज्ञात २०२४ ई० हीमें प्राचीन संसारका यह महत्वपूर्ण पद उठा दिया गया । श्रब न तो सेना कहीं हैं, न सेनापति ही । मैंने अभी इतना ही देख पाया था कि इतनेमें सभी लोग कामपरसे चले झ्राये । आते ही सुमेघने मुक्ते चलनेके लिए कहा ! मैं उठ खड़ा हुश्रा मकानसे बाहर जानेपर, केवल किवाड़ लगाकर जब सबको ही चलते देखा तो मैंने पूछा-- “कया यहाँ कोई नहीं रहेगा £*” काम क्‍या है ??? “-चीजोंकी रखवालीके लिए; और नहीं तो सकानमें ताला ही लगा- चलते “अनजान आआदमीद्वारा भूल-चूकसे पुर्जा छू जानेके इरसे तालेकों बिजली के कारखानों में लगाते हैं । यहाँ किताबों के छूनेसे कौन मर जायगा इसके लिए दर्वाजे तो लगा ही दिये हैं ।” जी जानवरका नाम श्राते ही स्मरण आरा गया, कि यहाँ तो पहले बहुत बन्द्र थे; पूछा-- _.. यह तो मालूम कि श्रब चोरी की परन्तु, यह तो बताश्रो, पहले यहाँ बहुत सम्मावना नहीं है । बन्दर रहते देखे थे, अरब वे क्या जुए---एक भी नहीं दीख पड़ते ?” यह सो वषसे पूर्वकी बात पूछ रहे हैं । मैंने पस्तकॉंमें पढ़ा है पहले जिन“जिन स्थानोंपर बन्दर बहुत थे, फसलका नुकमान देखकर .सरकारने बड़े यत्लसे पकड़-पकड़कर उममेंसे बन्दरियोंको तो हजारों पिंजड़ॉंवालिं' घरोंमें रख छोड़ा और बन्द्रोंको एक टापूर्में छोड़ दिया । इस प्रकार २०-२५ वर्ष के अन्दर सारे बन्दर स्वयं नष्ट हो गये, क्योंकि. उनकी सन्तान-वृद्धि रुक गई |? तो क्या अब बन्दर हैं ही नहीं १”... कद “कुछ हैं, जो प्राणि-विद्याके उपयोगके लिए, बड़े-बड़े संग्रहालयोंमें रक्खे ; जहाँ उनकी संतति झ्ावश्यकताके अनुतार बढ़ाई जाती है |




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