अर्थ वेद भाग २ | Aarth Ved (vol-ii)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16 MB
कुल पष्ठ :
536
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)का० १० ०४ सूर छ ] 43.
लिखों ह प्रजा श्रत्यायसायत् न्यन्या ग्रकंमितोऽविशन्त 1:
बृहन् ह तस्यौ रजसो विमानो हरितो हरिणीरा विवेश ॥३॥
दादश प्रधयश्चक्रमेकं त्रीरखि नभ्यानि कं उ तच्चिकेत ।
तत्राहतास्त्रीखि रातानि शङ्खवः षष्टिर खीला ्रविचाचला
येः।] ४॥
इदं सचितवि जानीहि षड्.यमा एक एकजः !
तस्मिन हापिलत्वसिच्छन्ते य .एषामेक.एकजः ॥ ५.॥
श्राविः सचिहितं गुहा जरन्नाम महत् पदम् ।
तत्रेदं सर्वमापित मेजत् प्राणत् प्रतिष्ठितम् ॥ ६ .॥
एकचक्रं वतं त. एकनेभिसहसराक्षर प्र पुरो नि पर्चा ।
` भ्रधेन विवे भुवनं जजान यदस्याधं क्वतदु बभूव 11७0
पञ्चव्राहीं वहत्यग्रमेषां प्रष्टयो युक्ता श्रनुस्वहन्ति ।.
अ्रथातमस्य ददृशे न यातं परं नेदीयोऽवर दवीयः ॥ ठ ॥
तिर्यस्विलश्चमस ऊ्वेवुध्नस्तस्मिन् यशो निहितं विश्वरूपम् ।
तदासत ऋषयः सप्त साक ये श्रस्य गोपा महतो बभूवुः ॥ ६ ॥
या पुरस्तादृयुज्यते या च पड्चाद् या विर्वतो युज्यते य च सवेत
यया यज्ञः प्राङ् तायते तां स्वा पृच्छामि कतमा सं च्छचाभर ।।१०॥
जो भूते, भविष्य श्रौर सब में व्यापक है जो दिव्य लोक का भी
अधिष्ठाता है, उस ब्रह्म को प्रसाम है ॥ १ ॥ 'यह पृथ्वी श्रौर श्राकादा
स्कंभ द्वारा ही स्थान पर स्थित हूँ । इवास लेने श्रौर पलक सारने वाले
यह भाहम रूप स्कंभ ही हैं 11२1! तीन प्रजाएँं इसे प्रास करती हैं श्रौर
य सव श्रोरसे सूर्ये में प्रविष्ट होती है । पु्थिवी का ररचचिता व्रह्म
स्थित रहता हुम्रा हरे वरणं वाली हरिसी में प्रचिष्ट होता है ॥२॥ वारह्.
'प्रधि' श्रोर तीन 'नस्य' है, उसमें तीन सो श्राठ कीले ठुकी हैं, इन्हें कौन
जानता है ।(४।। है सचिता देव ! यह छं क्ऋतु .दो-दो . मास की हैं श्रौर
वषं एके है 1 इनमें 'दो ब्रह्मा से उत्पन्न प्राणी हैं' उनमें से एक प्रकार के
प्राखी उस ब्रह्मा में ही लीन होने की कामना करते हैं. 0५५ गुफा रूप देह में
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