दस्ते सबा | Daste Sabaa

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Daste Sabaa by फैज़ अहमद - Faiz Ahamad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र्‌ हमेशा सब्ज रहेगी वह शाखे-मिहरो-वफ़ा, कि जिसके साथ बेधी है दिलों की फ़तहो-शिकर्त। यह शिश्रे हाफिजे-शौराज ए सवबा ! कहना, मिले जो तुम से कहीं वह हबीबे-श्रम्बरदस्त । “ख़लल पज्ौर बवद हर बिना कि मे बीनी, बजुज़ बिनाए मुहब्बत कि खाली भ्राज खलल श्रस्त ।” सेण्ट्ल जेल, हैदराबाद २८-२६ शभ्रप्रैल, ५२ ई * जो भी ग्राधार तू देख रहा है, वह दोष-युक्त है । सिवाय प्रेम के आ्राघार के, जो दोष से मुक्त है ।




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