सनातनधर्मोद्धार | Sanatanadharmoddhar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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खण्ड २] सामान्यकाण्डस्य पूवाद्धः ४१७ बुदरत्वेन गररीतम्‌ । तदरदितत्वे तन्नान्ना विभागाजुपपत्तिरित्याशय इति वेश्च ! अन्यरचि- लस्याप्यन्येन विभागस्य दृष्चरतया भ्यमभिचारात्‌ । किंच तन्नान्ना पचिद्धिरपि वैदिकेषु बा, बेदव्षु बा, तदुभयसाघारणी बा, विवक्षिता । नायः बेदिकेषु तादृश्बेदभागानामर- चितत्वस्येव परसिद्ध हेतोरेवासिद्धत्वेनाभासत्वभसङ्गात्‌ । अतएव न द्वितीयः तस्याः स्वतो- ऽसभवेन बेदिकपसिदधविवान्तमावात्‌ । नापि ठतीयः तककरृकविभागस्य स्वरसत उभयत्र परसिद्धमावात्‌ । अय तेषां बेदवाक्यानामृषयो ये बिश्वामित्रादयो बेदिकमरसिद्धास्तेरेद हानि रघचितानीत्याशय इति चेत्‌, तहिं बेदिकपसिद्धिमाभिलय तत्तन्मन्नाणां तत्तषिराचे- ॥ भाषा ॥ हस रचना से पूव, वह पदां असिद्ध ही रहता है जसे उस घट की रचना से पूरे, वह्‌ घट } अब यह्‌ स्पष्टरूप से प्रकट होता दे कि वेवर साहेब ने जो ऋचाओं का बिभाग सिद्ध किया उस से उट्टे यह सिद्ध हु कि ऋचाओं के ऋषिकृत बिभाग से पूत्र, वे चारे अवश्य ही सिद्ध थीं क्योंकि यदि वे पूर्व में न होती तो बिमाग किनका होता १ ओर जव बिभाग से पूब में वे थीं तब उनकी भनादिता, बिभाग कहने वले के मुख दी से सिद्ध हो गई । , सा०--यदि वे ऋचाएं उन ऋषियों की रचित न होती तो उनका बिभाग उन ऋषियों के नाम से प्रासिद्ध ने होता । ख०--(१) पिता आदि के रचित वस्तुओं को भी पुत्र आदि बिभाग करते हैं इस से यह कोई नियम नहीं दे कि जिस वस्तु का जिस के नाम से विभाग हो वह वस्तु उसी की रचित होती हैं और जब यह नियम ही नहीं दे तब उन ऋषियों के नाम से बिभाग होने के कारण कदापि वे कऋचाएं उनकी रचित निश्चित नहीं हो सकतीं । ख०-(२) बेदिकों में डन ऋषियों के नाम से उन कऋचाओं की प्रसिद्धि होने से यह अु- मान किया जाता है कि वे कऋचाएं उन ऋषियों की रचित हैं (१) अथवा बेदबाहा मनुष्यों में उक प्रसिद्धि से उक्त अनुमान किया जाता है (२) किंबा अनुमान में उक्त प्रसिद्धिमात्र दी हेतु दे चाहे बह प्रसिद्धि किसी प्रकार के मजुष्यों में हो (३) ? पहिछा पक्ष ठीक नहीं है क्योकि बेदिकों मे यह्‌ प्रसिद्धि दी नहीं है कि ऋचाएं ऋषियों की रचित हैं किन्तु इसके बिरुद्ध यद प्रसिद्धि हें कि बेद किसी का रचित नहीं किन्तु अनादि है देसे ह द्वितीयपक्ष मी निभूक दही है क्योकि बेदबाह्यमदुष्यां मे उक्त प्रसिद्धि है ही नदीं । प्रसिद्ध है कि बेदवाझय सब मत आधुनिक हैं और उन में जो प्रसिद्धि दै वह भी पूर्वोक्त अनुमान ही सेद न कि किसी शब्दप्रमाण से । और जब वे बेद्बिरुद्ध हैं तब उन मतप्रन्थों में कही हुई प्रसिद्धि बादकथा मे वैदिको के प्रति हेतु बना रर वेदबाह्य के ओर से कदापि नदी कदी जा सकतीं क्योंकि बादिक छोग उस प्रसिद्धि को झूठी कहते हैं और यह भी कहते हैं कि ऋषचाओं के विभाग की प्रासिद्धिमात्र सय है परन्तु उस से रचनां नहीं सिद्ध हो सकती । इन दोनों पक्षों के खण्डन से हृवीषपक्ष का भी खण्डन हो चुका । सा० वैदिकसेप्रदाय मे जिन मरन्त्रोके जो ऋषि (बिश्वामित्र आदि ) प्रसिद्ध हैं दे मस्त्र, उन्दी ऋषियों के रचित हैं यददी आन्तरिक आशय वेवर सादेव का दे । | , , श०-(९) इस भाशमवणन से यददी निशढा कि बेदिकसम्पदाय ही में जो मस्तिद्धि,




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