मुस्तफा कमाल पाशा | Mustafa Kamal Pasha

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Mustafa Kamal Pasha by प॰ कार्तिकेयचरण मुखोपाध्याय - P. Kartikeyacharan Mukhopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पमा कला णा उत्पन्न कर, उनके खमाजका खरप रेखा सुनुत घना दिया, किं जिसकी यशा मीन्हींकीजासकतीथी। समाज संगठन हो चुकनेके वाद उनके तमाम अजुयायी उनके उपदेशोंको 'पुदा तालाका हुक्म' या “ईश्वरद्त्त आदेश समकने लगे। कुर कारे अनन्तर स्वाभायिक रोतिसे इस घातकी 'सावश्यकता हुई, कि उनके प्रत्येक काममें सहायता कनके लिये पक सहकारी नियुक्त किया जाये। निश्चित हुआ; कि जो आदमी इस पदपर नियुक्त किया जाये, घदद समाजके लोगोंकि म्याय-भन्यायका पिचार करे, सर्वे साघारणसि लिये ईशवरा- राधनामें मुखिया या प्रधानका कार्य करे और इस्ठाम-धर्म की श््षाके लिये उसके विणेधियोंते संग्राम करे । ॥ मुदम्मद साहवके जीवन-फ्राठमें स्वयं मुहम्मद साहबकों थाशासेददी सब काम काज होते थे | पर उनकी गत्युके षास उनके स्थानपर रहकर उनके प्रतिनिधि-स्वरूप कार्य-संचालन करनैयाले खलीफा कहलाने छगे । _.. पैगम्वर साहवको खत्युकें पश्चात्‌ ऐसे योग्य व्यक्तिके चुनाव- का प्रश्न उठा, जो जनताकों घार्मिक, सामाजिक भौर राजनीतिकं मा्गाँका प्रदर्शन करा सकता हो । इस प्रकारका प्रश्न मुहम्मद साइयके मनमें कमो उठा नदीं होगा, यह नहीं कहां जा सकता, चल्कि इसका प्रमाण पाया जातः है, कि उन्होंने जान-यूमकर इस प्रश्नको इस्लाम-घर्मावलस्वियोंके विचाराघीन छोड दिया था। सुसब्मान जगतूमें यह किंवद्न्ती वहुत दिनोंखे प्रचलित =~१४५---




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