हिन्दुस्तानी त्रैमासिक | Hindustani Traimasik

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Hindustani Traimasik by विद्यासागर -Vidyasagar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राष्ट्रलिपि के रूप में देवनागरो लिपि डां० मोलानाय तिदारी जिस प्रकार किसी बहुभाषी राष्ट्र के लिए राष्ट्र एवं राज्य-भाषा के रूप में कोई एक मापा अपेक्षित है, उसी प्रकार वहुलिपि वाछे राष्ट्र के सिए राष्ट्रलिपि के रूप में एक लिपि भी अत्यंत आवश्यक हैं। कहना न होगा कि भारत इसी प्रकार का एक बहुलिपि बाला राष्ट्र है। स्वभावत, घह ग्रदन उठता है कि किस लिपि को भारत की राष्ट्रलिपि के रूप में स्वीकार किया जा सकता है । भारत की प्रमुख प्राचीन तथा आधुनिक छिपियाँ ये हैं ~ ब्राह्मी, खरोष्ठी, गुप्त, छुटिल, देवनागरी, शारदा, वंमला, तेठछुगु, कनड़, ग्रंथ, कॉलिंग, तमिल, वष्टलृतु, मलयाक्म, गृरुनुखौ, गुजराती, मेधिी, मो डी, कथौ, महाजनी तथा चू । अंग्रेजी के साथ हुमें रोमन लिपि मिली है। उसे मिलाकर कुछ प्रमुख लिंपियाँ २९ हुई, जिससे किसी न किसी रूप में भारत का संबंध है । उपर्युक्त सुची पर यदि दृष्टि दौड़ाएँ तो इनके दौ वगं बनाए जा सकते ह (क अपर चलित अथवा प्राचीन लिपियाँ--जैसे ब्राह्मी, खरोप्ठी, गुप्त तथा कुटिल औआदि। (ख) प्रचलित छिपियाँ--जैसे देवनागरी, बंगला, तमिल, गुरुमुखी आदि। इनमें से जो अप्रचेलित लिपियाँ हैं, आज की जनता से पूर्णतः दूर हैं। उनका प्रयोग लेखन में कोई भी नहीं करता । उनकी जानकारी भी मात्र कुछ लिपि-विशेषज्ञों था पुरासत्ववे्ताओं आदि को ही है। उनमें पुस्तकें भी प्राय: नहीं छपतीं । ऐसी स्थिति में उनको राष्ट्रलिपि बसाने का प्रदून ही नहीं उठता । मुतभापा की भाँति उन्हें मुतछिपि कहा जा सकता है। प्रचछत लिपियों में महाजनी,, कैथी, मोड़ी, शारदा आदि बिककुरष सीमित क्षेत्रों में प्रचलित है मौर विशिष्ट लोगो द्वारा ही प्रयुक्त होती हैं। इस प्रकार उनका ज्ञान बहत ही वम लोगं को द साष्ट कौ जनसंख्या में उसको जानने वालों का प्रतिशत अत्यंत नगण्य है। अत्तएव इनमें भी कोई राष्ट्रलिपि होने के योग्य नहीं है। उपर्युक्त दोनों प्रकार की लिपियों को छोड़ देने पर अब भारत की वे प्रमुख छिपियाँ ही नेप रहती हैं, जिनका प्रयोग भारत की प्रमुख एवं महत्वपूर्ण मापाओं के लेखन में होता है। ये लिपियाँ संबद्ध भाषाओं के साथ नीचे दी जा रही हैं :--- देवनागरी लिपि--संस्कृत, पालि, प्राकृत, अपभ्ंश, हिन्दी तथा मराठी के लिखेंने में इसका प्रयोग होता हैं। मनीपुरी भाधाभाषी मनीपुरी भाषा के लिए बँगला छोड़कर इसके प्रयोग पर विचार कर रहे हैं। मारत के सिंधी भी अरवी लिपि पर आधारित सिंघी “जो चर्दू से मित्र नही है को छोड कर उसके स्थान पर देवनागरा छिपि को अपनाने के पक्ष मे होते जा रहे हैं




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