कृषि का अर्थशात्र | Krashi Ka Arthsatra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फार्मों की साइज | 61 होती है, तो दहद दे पमाने के परिचालन से सिलते वाले लाम प्राप्त करता है । ये लाभ वडी सख्या मे अशों के क्रय-विक्रय से और कृषि की मशीनों को उनकी पूणं क्षमता मे चलाने मे उत्मन होते हैँ । एेते कषक को अधिकतम लाम प्राप्त करने के लिए मशीनों को एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र ले जाने का अतिरिक्त व्यय करना पड़ता है । फामें के पास की जमीन न मिलने से, उसे उपर्युक्त लाभ के सिवाय अन्य लाभ प्राप्त नही हो पाते हैं । एक पूर्ण रूप से व्यवस्थित देश में सबसे अधिक आर्थिक फा्मे के साइज़ में वृद्धि को न्यायसगत नहीं कहा जाता है क्योकि साइज़ की इस वृद्धि से वहा की फार्मिंग के मान मे धीमी गति से विस्तार होता है । फार्मिग का मशीनी- करण सम्भवत' पार्म के साइज़ मे वृद्धि कर देना है और उसे सबसे सस्ते ढग से चलाया जा सकता है, परन्तु इससे फार्म को वास्तविक साइज़ नहीं मिल पाता है । 6. कृपि सम्बन्धी साख (^हणव्णाःण्या एष्व फामिगके व्यवसाय का साइज कभी-कभी पूंजी प्राप्त करने की कठि- नाइयो द्वारा सीमित हो जाता है । इपको को भी अन्य उद्यमियों की भाँति, बनी हुई बस्तुओ के भुगतान पाने के पूवं ही अर्यात्‌ कृपि वस्तुभो को उत्पन्न करने के लिए खर्च करना पड़ता है । सरल शब्दों मे, फार्मिंग के लिए पूंजी की आवश्यवता होती है । इग्लैण्ड में, उद्योग की अपेक्षा कृषि में प्रति कार्ये- कर्ता पूंजी की आवश्यकता अधिक होती है । ऐसा अनुमान लगाया गया है कि सन्‌ 1928-30 में कृषि में प्रति कार्यकर्ता पयोग की गयी अवत पूंजी 1570 पीण्ड थी । इस पूंजी का तीन-चौथाई भाग भूमि, इमारतों आर दीर्घकालीन विनियोजनों के रूप में था । उद्योग में यह राशि केवल 430 पौण्ड धी । उत्पादन के पूर्व किय जाने वाले खर्च को निम्नलिखित दो श्रेणियों म बांटा जा सकता है -- (1) दीर्घकालीन पूँजी-यह पूंजी लम्बे समय के उत्पादन को क्रिया में सहायता देने वाले उत्पादन के साघनी को प्राप्त करने में व्यय की जाती है 1 (2) अल्पकालीन पूंजी--यह पूंजी वस्तुओ के एक खेप ( 9402 ) के उत्पादन में सहायक होती है । कुछ आधिक उद्देश्यों के लिए दीर्घफालीन पूँजी को पुनः दी्घकालीन ओर मध्यस्य पूंजी मे विभाजिते करना आवश्यक होता है । दीघेंकालीन




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