कोटा राज्य का इतिहास | Kota Rajya Ka Itihas

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Kota Rajya Ka Itihas by श्री जगदीशसिंह गहलोत - Jagadish Singh Gahlot

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कोटा राज्य श्प्रु कचहरी मे रहता था श्र प्रति वष॑ दीवान के पास भेजा जाता था । खचं के मुख्य मद--पुण्याथं द रगाही हनूरीकातन राजलोक महल कारखाना बोहरा को देना देश का खर्च श्रटाला ्राम्बार सेना श्रादि थे । बेगार प्रथा द्वारा भी राजकीय कार्य होता था । बेंगार मे प्रत्येक बेंगारी को जबरदस्ती कार्य करना पडता था श्रौर उसे केवल पेट-पूति के लिए नाम मात्र पैसे दे दिये जाते थे । राजपूताने मे जागीर प्रथा का यह एक विनोेष अझग था । न्याय हिन्दू प्रणाली से किया जाता था । परम्पराश्रो को हष्टिकोण मे रख कर ही दड दिया जाता था । गाव की पचायतों को दण्ड देने का श्रघिकार था । उनकी श्रपील हो सकती थी । प्रत्येक परगने के मुख्य गाव मे कोतवाली का चबूतरा होता था । कोतवाल ही श्रपराधियो को पकडता था श्रौर वही उनको दण्ड देता था । न्याय विभाग कोई प्रथक नहीं था । चौधरी कानूगो श्रौर ठाकुर से भी न्याय करने की प्रथा थी । शिकायतों की सुनवाई होती थी । कौोगजी कार्यवाही कम होती थी । चोरी डकती श्रौर हत्या के श्रपराधघियों को प्राय श्रग-भग व प्राण-दण्ड ही दिया जाता था । छोटे अपराधों का श्रर्थ-दण्ड दिया जाता था । व्यभिचार पर दण्ड जुर्माना होता था । राज-नियम का भग करना घोर भ्पराध माना जाता था । राजा की कोप हष्टि होते ही उस व्यक्ति का सर्वेलाश हो जाता था । तोप से उडा देना सिर कटवा देना हाथी के नीचे कुचलवा देना राजा के बाए हाथ का खेल था । इसके विरुद्ध कही श्रपील नही की जा सकती थी। सेना का श्रध्यक्ष फौजदार कहलाता था । कोटा की सैनिक व्यवस्था मृगल व्यवस्था से मिलती-जुलती थी । कोटा की सेना मे भी फोजदारी फीलखाना छुतुरखाना रिसाला तोपखाना हरावल श्रादि होते थे । सेना मे दो प्रकार के सिपाही थे । एक तो जागीरदार भेजते थे जिनका खर्चा स्वय जागीरदार देते थे। दूसरे महाराव स्वय भर्ती करते थे । महाराव का यह कार्य फौजदार करता था । जालिमसिंह के पहले स्थायी सेना सुव्यवस्थित रूप से रखने की कोई प्रसाली नहीं थी । जालिमरसिह ने छावनी भालावाड मे स्थायी सेना का मुख्य केन्द्र स्थापित किया । कवायद दिाक्षा श्रनुशासन से सैनिक सगठन में सुधार किप्रे । हाथी घोडे ऊटो का प्रयोग सेना मे होता था । अधिकतर घोडे काम में लाए जाते थे । पैदल सैनिक को युद्ध की पं शिक्षा दी जाती थी । श्रधिकतर सैनिक लोहे के कवच श्रौर टोप पहनते थे । तलवार ढाल वर्छी भाला व तोप काम मे लाए जाते थे । कोटा के मुख्य किलो का जीर्णोद्धार करवाया जाता था




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