चिंतन के क्षणों में | Chintan Ke Kshano Me

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Chintan Ke Kshano Me by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ऋः ८१. यह क्यों समझ रखा है कि डराये कोर वालक काबू में ही नहीं आ सकता * एक वार प्रेम का प्रयोग करके तो देखो । तुम्हें सफलता होगी । ८२. पता नही, वह आदमी कैसा रहा होगा, निसने ईश्वर का डर दिखाकर अपने भाइयों पर अधिकार जमाने की बात सोची होगो । ८३. आदमी ईख्वर से डराया नाता हे । शायद उसीक्षा यह परिणाम हे कि वह अपने बच्चे को हौवा से डराता है, कु्ते-बिह्डी तक से उराता हे । ८४. डरानेवाले को अगर यह मालूम हो कि डर के वया-क्या बुरे नतीजे होते हैं, तो वह अपने वच्चे को डराने की वात सोचे ही नहीं । ८५. याद्‌ रखो, डर बालक के हृदय म बड़ी जल्दी जट पकडता हे धीर जल्दी दी गहरी जड जमा देग हे। वह फिर आसानी से उखाड़ फेंका नहीं जा सकता । ८६. हमसे कहा नाता हे कि हमारे अन्दर इस्वर है और यह हम जानते ही हैं कि हमारे अन्दर इर है) तव क्या हम यह कह सकते है कर ईरवर के यन्दर भी डर हे ?




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