इशा उनका काव्य तथा रानी केतकी की कहानी | Isha Unka Kavya Tatha Rani Ketaki Ki Kahani

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Isha Unka Kavya Tatha Rani Ketaki Ki Kahani by ब्रजरत्न दास - Brajratna Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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छ ट्शा क्षा जीवनस उसमे अपनः! नाम अमर कर जति हँ । इनके चञ्च स्वभावं म चुख्बुलाहट की मात्रा अधिक थी ओर इनके भवुक हदय का झुकाव भी कविता की ओर था इसश्एि ये इसी ओर झुक पड़े । | इंशा ने अपनी काविता किसी स संशोधेत नहं करा पर कुछ दिनें तक आरम्भ में अपने पिता को दिखा लिया करते थे । विद्या के सभी मार्ग ऐसे हैं कि उनमें 'मूरख हृदय न चेत, जो गुरु मिं बिरश्ि सम । परन्तु इन सब में कविता का मागे निराठा है जहाँ गुरु और शिष्य देन ही अतिभाशाली होने चाहिए और तभी दोनों के परिश्रम साथेक हो सकते हँ । जिस प्रकार अच्छे गुरु का मन्द बुद्धि वाले शिष्य पर परिम करना व्यथे जाता है उसी प्रकार मेधावी शिष्य कुकवि गुरु के फर मेँ पड़कर बेढंगा रास्ता पकड़ कर अपना श्रम निष्फर्‌ करता है । इसलिए यदि प्रातिभा- शाटी सिष्य अपने पुरुषाय के सहरे को नया मार्ग निकाल छता है तो वह कम से कम बुरे मार्ग से अच्छा ही रहता है । अस्तु, जब बज्ञाठ के नवाब सिराजुद्दौढा मारे गए और वहाँ गड़बड़ मचा तब सेयद इंशा मुर्शिदाबाद से दिछी चढे आए | उस समय दिष्ठा के' केवर नाम मात्र के सम्राट शाहे- आलम द्वितीय स्वयं कवि थे । बादशाह ने सैयद इंशा को बड़ी प्रतिष्ठा के साथ अपने दरबार में रख छिया और ये भी




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