प्रहलाद | Prahalad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषेतिहास सुसभीक्ितकाव्यसुष्टेः, हा हेति यस्य निधनेन खरोद हिंदी ॥ छिद्ानुकर्षणपररपरेयंदि स्या- न्निदाकृता सकल काव्यकला:्नभिज्ञ : । तच्छोभनं महदसत्यपद न चत- द्‌ दुष्ट: प्रसहा परदूषण गृध्र दुष्टिः ॥ इन शब्दों के साथ हिन्दी समीक्षक कृलमुर आचायं शुक्ल को प्रणाम । १--आचायं रामचंद्र शुक्ल- पृष्ठ ३१ २--शुक्ल जी को आधुनिक भारत के संश्लिष्ट काव्यशास्वर का मेरुदण्ड मानना चाहिये । डा० नगेन्द्र- भारतीय समीक्षा-पृष्ठ ३३ भारत-रत्न श्रीमती इन्दिरा गाँधी का बलिदान ३१ अक्टूबर ८४ का दिन विश्वशान्ति के इतिहास में धूम्रकेतु की तरह आया । भारतीय राजनीतिक वचंस्व का सूय॑ श्रीमती इन्दिरा गाँधी के रूप में अस्त हो गयां । प्रधानमंत्री आवास ही में उनके सुरक्षा सिपाहियों ने उनकी गोली मार कर हत्या कर दी । स्वामी श्रद्धानन्द तथा महात्मा गाँधी के बलिदान के द्विभुज मे ( तीसरी भुजा जडी । इविहास का फीता इस त्रिवेणी की बलि- दान-धारा कौ नापने के लिए बहुत छोटा पड़ गया है । इन्दिरा जी का जीवन और मृत्यु दोनों शानदार रहे हैँ । निगुट सम्मेलन का आयौजन और फिर नियगु ट राष्ट्रों का नेतृत्व कर अपनी प्रतिभा, सुझबूझ, संगठन-क्षमता, निर्भीकता और विश्व-संवेदनशीलता के कारण उन्होंने तीसरी शोषणमुक्त शान्तिप्रिय दुनियाँ के निर्माण को नींव डाली । सावेजनीन लोक- प्रियता तथा धरमंनिरपेक्षता के प्रतीक रूप में उनका वचेस्व न सह सकने के कारण वह एक बड़ षडयंत्र का शिकार बनीं । दीन-दलितों की मसीहा तथा शक्ति- सम्पन्न समृद्ध भारत की निर्माता, आज हिमालय के हिम-मण्डित शिखरों में अनन्त निद्दा में लीन होकर भी भारतीय युवकों को ऊँचा और ऊँचा उठने की प्रेरणा दे रही हैँ । लोकतंच्, समाजवाद तथा धमेनिरपेक्षता के लिए बलिदान हो जाने वाली इस राष्टू-जननी को हमारे शत-शत प्रणाम । ( ट )




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