नीर - क्षीर | Nir- Kshir
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)| एक चित्र
चुके थे । उस दिन बगीचे से देर में आने के कारण बसंत
से कहने लगे-
'बसंत; क्या झभी बगीचे से झा रहे हो ? तुम्हें किसी
फूल की पंखुड़ियों सइलाने में क्या मज्ञा मिलता है, भौरों
कौ भिनभिनादट तुम्हें केसे प्रिय लगती है; शायद तुम
मतुप्य से अधिक प्रिय पेड़-पौधे, कीड़े-मकोड़े लगते
हैं। अच्छा होता यादि ईश्वर तुम्दें एक पेड़ बना देता;
तुम प्रार्थना करे कि भगवान् दुमे जामुन का एक 5
पेड बना द । आज से यदि रात को बगीचे गये तो मैं
तुम्हारे पिताजी को पत्र लिख दूँगा ” बसंत ने सकर
कहा; “'झच्छ्ा; अब नहीं जाऊँगा ।'
बसंत ने साचा अव्र घर में ही फूल-पत्तियों रख लेगा;
मन-बहलाव का साधन बना लेगा झऔर झपने कमरे को
चारो ओर फूलों से सजा लेगा । कुछ उन्मन-सा अपने
कमरे में बैठा बसंत साहित्य-सुषमा उठाकर पढ़ते लगा---
प्राकृतिक दृश्यों के पूव साहत्चर्य के प्रभाव से; प्रेम-भाव
से; संस्कार या वासना के रूप में उसके प्रति हमारा प्रेम
हमारे हृदय में निहित है । उनके दर्शन या काव्य में उनके
परदशन ते अघुरंनन होत दै । जो प्रकृति-हृश्यों को केवल
कामोद्दीपन की सामग्री समभते है, उनकी रुचि शष्ट हो
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