रामानुज के विशिष्टद्वेत में भक्ति का सम्प्रत्यय | Ramanuj Ke Vishishtadvet Men Bhakti Ka Sampratyay
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
13 MB
कुल पष्ठ :
184
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सनातनीवर्ग मान्यता नही दे रहा था। आलवार सतो के गीत यद्यपि भक्ति रसामृत प्रवण थे,
तथापि समाज का उच्चवर्ग उनसे अपना तादात्म्य स्थापित नही कर पा रहा था | ज्ञान-सिद्धात
के नीरस दर्शन से प्राकृत जन आतकित था और कुछ-कुछ किकर्त्तव्यविमूढ भी । ऐसे
विश्रेंखलित समाज मे एकरसता का वातावरण उत्पन्न करने का कार्य युग-पुरूष रामानुज के
कन्धो पर आ पडा। रामानुज ने इस गुरूतर दायित्व का निर्वाह भी बडी ही सूझबूझ एव
कुशलता के साथ किया | समाज के बुद्धिजीवी एव अभिजात वर्ग के लिये उन्होने “भक्तियोगः
जैसे मध्यममार्ग का प्रतिपादन किया, जिससे न केवल बौद्धिक जनो की ज्ञान पिपासा की
तृप्ति हो सके, अपितु लोगो की धार्मिक भावनाओ, मान्यताओ की भी तुष्टि हो सके । दूसरे
शब्दो मे, जिसे बुद्धि समञ्च सके व हृदय अपना सके । साथ ही, उन्होने भक्ति के ही अगभूत
'शरणागति' का प्रतिपादन करके, समाज मे महिलाओ व श्रो के वर्गं के अहम् की तुष्टि की,
जिसे न तो वेदो के पावन ज्ञान का अधिकार था, न ही सासारिक जगत् के वात्याचक्र मे फसे
होने के कारण ज्ञान, भक्ति या कर्म किसी भी साधन द्वारा ईश्वर-प्राप्ति का अवकाश था |
रामानुज के परवर्ती-काल मे 14 वी 15 वी शती मे 'रामावत-सम्प्रदाय' के अतर्गत
कबीर, तुलसी आदि ने भक्ति तत्व की महिमा का पर्याप्त सवर्धन किया एव वस्तुत भक्तिः
भारतीय जनमानस मे पञ्वम-पुरूषार्थ' के रूप मे स्थापित हो गयी | आचार्य तुलसी ने तो
रामचरितमानस जेसा भक्ति-सरोवर' बनाकर, युगो से पड्कपूरित जनो को उसमे अवगाहन
करा, निर्मल कर दिया | उधर कबीर ने सिद्ध कर दिया कि भक्ति का मार्ग भी मुँह का कौर!
नही, वरन् धेर्य एव समर्पण की पराकाष्ठा है -
कबीर कठिनाई खरी, सुमिरतों हरि नाम |
सूली ऊपरि नट विद्या, गिरे त नाही ठाम | /
इसी तरह गोस्वामी तुलसीदास ने भी पर्याप्त लगन एव धैर्य के साथ साधने पर
ही वास्तविक भक्ति के सिद्ध होने के बात कही हे -
[58]
User Reviews
No Reviews | Add Yours...