इंग्लैंड का राजदर्शन | Ingland Ka Rajdarasan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
204
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जेम्स प्रथम, बेकन तथा राजाओं का देवी अधिकार... १३
प्रतिष्ठित किया गया । गार्डिनर (21106) ने असाधारण रूप से कठोर
शब्दो मे कहा है, “श्रप्रतिरोध का सिद्धान्त झुज्िम था श्र वह श्रनेक वर्षों तक
इंग्लैंड की शक्तियों के घातक रोग के रूप मे बना रहा । यदि इसे कभी भी
सामान्य मान्यता प्राप्त हुई होती, तो यह उन सब गुणो कोः जिनसे यह देश
ताज इतना महान है, समूल नष्ट कर देता ।”
( २ )
यद्यपि राजाश्रो की दैविकता का सिद्धान्त रँग्लिकन चचं के बाहर शायद
ही अन्य कहीं स्वीकृत हुआ, फिर भी प्रबुद्ध स्वेच्छाचारिता का आदर उस
समय के प्रबलतम विद्वानों द्वारा पोषित था । किसी बड़े राज्य का पालमेट द्वारा
शासन दो सकता है, यह किसी को सभव नहीं जान पड़ता था तर केवल
राजसभासदों को ही नहीं वरन विचारकों व जन-सामान्य को भी यह स्वाभाविक
सिद्धांत लगता था कि राजा देश का वास्तविक प्रतिनिधि श्रौर संचालक दै । प्रबुद्ध
तर शक्तिशाली राजतंत्र के समर्थकों में वेकन महानतम था । उसके पुरोहित रॉले
टरि8फा 6) ने सन् १६२७ मे “न्यू एटलादिस” (प८्स 2. {12.118} प्रकाशित
करते हुए. घोषणा भी थी कि उसके स्वामी की “सालोमन्स हाऊस' (30100008
प्रण) के चित्र को आदर्श राज्य के चित्र द्वारा आपूरित करते को
इच्छा थी । “लेकिन यह देखते हुए कि यह बहुत लम्बा कार्य ठौ जाएगा;
प्राकृतिक इतिहास को संग्रहीत करने की इच्छा; जिसे वह इसकी चरपेच्ता प्राथ-
मिकता देता था, उसे दूसरी ओर ले गईं ।” फिर सभी उसको पुस्तिकाओ, भाषण,
लेखों तथा ग्रन्थों द्वारा उसके राजनीतिक विचारो का पुननिमांण करना संभव
है । यद्यपि डी आम्मेन्टिस” ( 106 ^+पषटचणलप्ं5 ) मे उस्ने चपने को
नस्वभावतः श्रन्य किसी कार्य की अपेक्षा साहित्य के लिए अधिक उपयुक्त
बताया ह तथा दुर्माग्यवश श्रपनी प्रकृति के प्रतिकूल दैनिक जीवन के कार्यो में
फंस जाने बाला” कहा है, पर विचारों के क्षेत्र की भाँति राजकीय विषयों में भी
उसका एक निश्चित संदेश था । परन्तु जहाँ दर्शन के क्षेत्र म वह पथ-प्रदशंक
था, राजनीति मे, यदि प्रतिक्रियावादी नही, तौ रूढ्वादी तोथादही।
बेकन का प्रथम राजनीतिक वक्तव्य जो धार्मिक समस्याओं से सम्बन्धित
User Reviews
No Reviews | Add Yours...