अपरनाम भगवती आराधना | Aparnaam Bhagvati Aaradhana

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Aparnaam Bhagvati Aaradhana  by सदासुख कासलीवाल - Sadasukh Kasliwal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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{ च ) विषय पृष्ठ , विषय पृष्ठ | विषय कूच्ठ कुरील चष्ट मुनि ४७१ | क्रोध कृत दोष जीतने का उपाय ५०१ | तियंचगति के दुख ५४४ यथाछन्द जाति न्रष्ट मुनि ४७३ | मानकृत दोष त ५०३ , देव मनुष्यगति के दुख ५४६ संसरा च ४७४ ¦ मायाजार कृत दोष र ५०४ | करमोदिय जनित वेदना को कोई दूर नही इन्दियासक्त मुनि भ्रष्ट है ४७५ , लोभ कृतं दोष ५ ५०६, कर सकता ५५२ इन्द्रिय कषाय बिजयी के ज्ञान | निद्रा विजय का उपाय ५०६ | संयमो को मरण भमला पर संयम कार्यकारी है ४८१ | तप महिमा ५०६ । ना ठीक नहीं ५५३ बाह्य साघुकासा धाचरणस्नीर | शरीर सुख में श्रासक्त के तप में दोष. ५१० | कर्म सबसे बलवान है ५५४ ग्रन्तरंग मलीन कृथा है ४८४ श्रालसीकेतपमें दोष ५१० ¦ श्रसात मे क्लेशित होना उचित नहीं ५५५ बाह्य प्रवृति शुद्धकर भ्रात्माकी शुद्धता ' तपङ्चरण के गुण ५११ ! व्रत भंग पाप है १५७ भ्रपेक्षित है ४८४ | निर्यायकाचार्यं के उपदेशा से संस्तर परत्यारूयान का भंग मरण से बुरा है. ५५८ श्रम्यन्तर शुद्ध के बाह्य क्रिया नियम प्राप्त साघु प्रसन्न होता है ५१६ , अ्राहार की लंपटता स्वं पाषोंको से शुद्ध होगी ४८४ | उपदेश सुन, संस्तर से उठ, गुरू वन्दना कराती है. ५४५४ बाह्य शुद्धता भ्रम्यन्तर शुद्धता का भादि किंस प्रकार करे ५१७ | घ्राहार लम्पटी के दुष्टान्त ५६२ सूचक है ४८५ ¦ ३ सारणा भचिकार ¦ श्राहार लम्पटी के क्लेश ५६५ इन्द्रियासक्त व्यक्तियों के दृष्टान्त ४८६ क्षपक के देने योग्य आहार ५१६ | शरीर.ममस्व त्याग का उपदेश ५६७ कों कुत दोष ४८८७ ' क्षपक के वेदना हने पर भ्रन्य सा | ३७ ( शण मी ५७९१ का कतव्य ५२० । इष्टानिष्ट में राग ढष नदी करना ५.७२ काक तक ५ ए ३५ कवच प्रधिकार ५२४ । समस्त पदार्थों में सम भाव रखना ५७३ मायाचार कृत दोष ४९२ , शिथिलता दूर करने हेतुं मीठे वचन साध्‌ की मत्री कारुण्य भदिता एवं मायाचारी कुम्मकार का दृष्टन्तं ४६२. द्वारा साघु को संबोघना ५२५ उपेक्षा भावना का स्वरूप ५७४ लोभ कृत दोष | साधु को चलायमान नहीं होना ५२७ | ३७ ध्यान श्रलिकार ५७५ भृगध्वज क दृष्टान्तं ४९४ विभिन्न परिषह सहने वाजे दृष्टान्त ५३१ | क्षपक शुभ ध्यान करता है, अशुभ नहीं » कार्तवीर्यं का दृष्टान्त ४६५ ¦ नरक भे उष्ण वेदना ५३८ | श्रार्त ध्यान के मेद ५७६ सामान्य इन्द्रिय कषाय जनित दोष । नरक में शीत वेदना ५३८ | अनिष्ट सयोगज भ्रार्तध्यानं % द्मीर निराकरण के उपाय ४६५ | नरक के अन्य दुःख ५३८ ' इष्ट-वियोगज ग्रार्त्तध्यान ५७०




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