बौद्ध धर्म के विकास का इतिहास | Bauddh Dharm Ke Vikas Ka Itihas

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Bauddh Dharm Ke Vikas Ka Itihas by डॉ. गोविन्दचन्द्र पाण्डेय - Dr. Govind Chandra Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अध्याय १ बुद्ध ओर उनका युग वैदिक पृष्ठभूमि अ्वेतरीय ओर आयधमं--प्रागेतिहासिक कार से भारत नाना जातियों ओर संस्कृतियों का आश्रय रहा दै ओर उनकौ विभिन्न प्रवृत्तियों तथा जीवन-विधाओ के संधषं ओर समन्वय के द्वारा भारतीप इतिहास कौ प्रगति ओर सस्कृति का विकास हुआ है । इस विकास मे आर्येतर जातियो का उतना ही महत््वपुणं हाथ रहा है जितना आर्य जाति का । पिके इतिहासकार भारत की आर्येतर जातियो को प्रायः बबैर अथवा असम्य मानते थे, अतएव यह्‌ कल्पना करते थे कि वैदिक तथा परवर्ती भारतीय सभ्यता के अभ्युम्रत तत्त्वे मूलतः आर्यो की देन होगे । परन्तु अब हरप्पा- सस्ति के पता लगने पर न केवल यह दुष्ट श्रान्त ठहरती है, ्रत्युत्‌ यह्‌ प्रतीत होता हैकिभारत मे आर्यो के आक्रमण को एक सम्य प्रदेश में बबेर जाति का प्रवेश समझना चाहिए ।* यद्यपि आर्यों ने अपनी पूर्ववतिनी आ्येतर सभ्यता को ध्वस्त कर अपनी विशिष्ट भाषा, धर्म और समाज को भारत मे प्रतिष्ठित किया तथापि यह्‌ निषिवाद है कि यह्‌ सास्करतिके विष्वस निरन्वय विनाश नही था ओर सिन्धु-संस्कृति के अनेक तत्त्व परवर्ती आर्य-सम्यता में अगीकृत हुए । आये तथा आर्येतर सास्कृतिक परम्पराओं का यह समन्वय भारतीय सम्यता के निर्माण की आधार-दिला सिद्ध हुई। इसका प्रभाव एक ओर उत्तर वैदिक-कालीन समाज-रचना में स्पष्ट देखा जा सकता है, दूसरी ओर उस बौद्धिक और आध्यात्मिक आन्दोलन में जिसका चरम परिणाम बौद्ध घर्मे का अम्युदय था ।* १-तु ~-पिगर, प्रिहिस्टरिक इण्डिया, प्‌० २५७-५८ 1 २-्र०- लेखक को स्टडोज़ इन दि गोरिजिन्स आव बुद्धिर्न, अध्याय ८ ।




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