प्रेमोपहार | premopahar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
152
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मेरी श्राशा
श्राशा ! कहो क्यों सुफसे रूठ गये ! मुक्त नहीं मादूम था कि
तुम सुक्ते इतने ही दिनों में त्याग दोगे। हाय ! सुर्य्य के शत्त
होते ही कमल ने श्राँखं मूंद लॉ । प्रकाशे मन्द पढ़ते ही
शरन्धक्षार ने श्रधिकार जमा लिया । ससार ! मैं चुर गई.
मेय सर्वस्व लिन गया ' यह मेरे दिल का दुकडा है-मेरे
हृदय का रख दे-मेरी श्राशा है। इस छाती में रख लूंगी--
श्राँखों में छिपा छूगी ।
( बेहोश होकर गिर पढ़ना )
(येन्ला)
र
+.
भोला का मकान
( भोराफे षिवा का षडवडते हुये शाना )
पिता--बेटा | बेटा ! भाग्य का हेठा, किस फा बेटा! कैसा
घेरा! मुर्ख बजर वद्टू-जोरु का टट्टू-स्त्री का मुख देखते ही हो
गया लट्टू। न पिता का भय, न माता का डर, जोरू पाते ही हो
गया निडर | पढ़ने के नाम से सर चकराता है, काम के नाम से
बुखार श्राता है । हाय | हाय !! श्राजकल के लड़के ऐसे विगड़ गये
कि श्रा चिवाह हुआ श्र कल से श्रांखें सेंकने लगे । प्रेम के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...