योगत्रयी | Yogtrayi
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
112
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कर्मयोग । &
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दण्डित किये जा रहे हैं क्योकि हमने भूतकाल मे कुछ वैमे
कर्म कयि थे । दण्ड उस महान् नियम का कोई अंग नहीं है ।
हमने कुछ कार्यो के करने की इच्छा की; और यथायाक्ति उन
कार्यो को कर भी डला, ओर उनका अनिवार्यं परिणाम उनके
पीट अव आया । हमने पहलें अपनी जैंगुलियों को आग में
डाल दिया और अब उनकी जलन पीड़ा की भोग रहे हैं, वस
यही मामछा है। जिन कार्यों को हमने भूतकालों में किया,
यह आवइयक नहीं है कि वे मव बुरी बातें थीं । सम्भव है
कि हमारी छगन किसी कमे से अनुचित रीति पर रूग गई हो
ओर उसी लगन ओौर कामना का प्रतिफल हम पर आ पड़ा
ह. जो कदाचित् थोड़ा हृत्त असुखकर ओर कषटदायक प्रतीते
होता हो, प्र वस्तुतः वह भला ही है, क्योंकि बह हमें ग्रह
सिखा रहा हैं कि जिस चात की हमने कामना की थी और
जिसपर ठगन लगाई थी वह्द वात हमें न करनी चाहिये थी और
अब फिर हम बैंसी ही भूढ न करेंगे । इसके अतिरिक्त एक
चार जब हमारी आँखे इस प्रकार खुल जावेंगी कि हम विपत्ति
की प्रकृति को समझ जावेंगे तो जलन की असद्य पीड़ा घट
जावेगी और ज़खम मुरझा जावेगा 1
उसी आध्यास्मिक कारण काय को कर्म कहते हैं । जय
करई मनुष्य कता दै कि “हमारा कर्म , तच उसका अभिप्राय
इमं प्रतिफल से होता है जो उस: कारण-कार्यं के नियम के
अनुसार उसे प्राम हुआ है, अथवा जो उस नियम की चरितार्थता
से उस पर अवश्य आ घटनेवाला है । '.प्रत्येक मनुष्य ने कुछ
कर्म किये हैं जिनके प्रतिफरू सर्वदा ` प्रगट हो.रदे है इस
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