प्रेम वैराग्यादि वाटिका | prem veragyaadi vatika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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प्रेम ( भक्ति ) &
विधाम लेता हैन, लगता क्या तुके अच्छा यद्ी।
क्या चित्तमें है ? कर रहा क्या ? सम्म आता नदीं ॥
आभा दमकती है तिदारी जगतकी सव वस्तुर्मे ।
वैश्रगर होते हो नहीं हूं तड़फड़ाता अस्तु मैं ॥२६॥
भौरे करें शुज्ञार कोयछ छकुहुंकती है डार पै।
पक्षी करें कछ-गान कुखुमित क्यारियां सरकार पे ॥
आशा लगाये मिलनकी है त्रिविघ वायू चल `रदी 1
रतरि-चन्द्र भी है खोजें ' नदियां विचारी वह रदी ॥र्शा
उस ॒विरहकी दै आग वडवानल जरधिके पेरमें ।
गम्भीरतासे तन जलाता है तिहारी मेंटमें ॥
गिरि-घक्ष भी तप कर रहे सब मौन-घारी हो खड़े ।
है शीत-वर्पा-उष्ण-वाय् स्वेदा खाकर झड़े 11२८॥'
ये प्रेम-मद् माते सभी हणे छली तेरे दिये ।
आँखें पसारे हैं सभी तब द्रश अग्छतके लिये ॥
अपनी न्यथा किखसे कटं, सवही विचारे दीन है ।
चिर काटसे आश्वा किये पद्-कमटर्भे ख्वरीन है ॥८६।॥
ऐखे पुजारी है जगतमें जव वुम्हारे े भमो!
गिनती हमारी कव करोगे प्रेमियों रे विभो!
क इन सर्योपर च्या कभी होगी तुम्हारी दृष्टि भी ?
- अब क्या नहीं होगी कभी इनपे द्यान्छी इष्टि भी १३०}
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