भारतीय साहित्य में भक्तिधारा | Bharatiya Sahitya mein bhaktidhaara

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Bharatiya Sahitya mein bhaktidhaara by हरिदास सानुदास - Haridaas Saanudaas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ त्यत गरे रंग में डालो तथा दास्य, माधुयं, वास्ठल्य एव स्य भावों मे ते प्रत्वेकं के पर्याप्त उटाहर्ण परसतुत कयि । भक्ति परपरा को प्रद्त्ति की इष्टि से हम तेलुगु साहित्य को उतना महत्व नहीं दे सकते । न तो यहाँ के क्षेत्र से वैसा बड़ा कोई भक्ति- श्रादोलन चला श्रौर न कोई ऐसा भक्त कवि ही हुआ लिसकी रचनाश्रों का बहुत व्यापक प्रभाव देखने मे श्याया । प्रसिद्ध वल्लभाचाये ने इस मदेश के होते टुए भी, श्रपने कार्य क्षेत्र को द्यन्यत्र बनावा श्रौर उन्होंने जो कुछ रचनाएँ: की उनका माध्यम वे तेलुगु को नहीं बना रुके । तेलुगु सादित्व वी इस शोर सबसे बड़ी देन के रूप में दम “श्री मदूभागवत? के व्याख्याता केवल पोननना का नाम ले सकते ह श्रौर उस राजकवि कृप्ण देवराव को भी नहदीं भूल सकते जिन्होंने “श्रामुक्त माल्यदा” जैसी श्रापूर्व स्चना प्रदान की है । पोतन्ना का श्री मदूभागवतः केवल कदने के लिए दी श्रनुवाट दे, उतका श्रधिक ग्रंश स्वत काव्य दारा ्रोतप्रोत ई भैर जिसके “गजद्रमोक्ष' ञे कतिपय प्रसगो कै स्पल पर भक्तिरस का प्रवाद विशेष रूप से उल्लेखनीय हे। श्रीठृप्शदेव राय की रचना में प्रसिद्ध प्ाव्वार भक्तिन श्ांडाल की क्या का वर्युन वड़ो सरस शैली में किया गया है । किदु ऐसे श्रन्य नामों का वहाँ प्राय- श्रभाव सा दी दीस पढ़ता है । विख्यात गायक त्यागराज के गीतें में इमें उनके इप्टदेव सम के प्रति भक्ति श्ववश्य भलफ्ती है, किंतु वह उनकी कला प्रिवता के सामने छुछ टव नी सती है ] गुजरात केः नर्तौ मेहता मे ददी के दण्ट छाप वाले कवियों जैसी हो भर गारिक भक्ति का उदादस्स मिलता ६ } वे जुकासम श्रादि मराठी क्वियो की भाति श्रपने पदों मं तल्लीनता छा भाव प्रकर चरना जानते हैं पीर उन पर उनके व्यक्तित्व का प्रभाव मी ब्टूत श्य८।द । गुजराती भाषा में प्रसिद्ध दचयिनी मीरावाई की भी रचनाएं इस सब मटूप्रिगेप रम से उल्ठेखनीय हे, स्ति उनकी श्धिक मदत्ता उनके दिंदी पदों के दी करण स्वीकार दी लाती ६ श्रौर उनमें प्रन्ट फिये गए सच्च दापत्य गाय के लिये वे तमिल की मक्तिन '्राडाल वा




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