इलाज | Elaaj

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Elaaj by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
3४ ~ श्रधूरा चित्र ॥ १७ श्राकर्‌ । स्पशं की कोमलता से सौदामिनी चौंक पढ़ी थी । फिर हलके टटोल कर बोली थी-“बिन्नी, पुष्पा, सरला !” श्रौर तब एकाएक खिलखिला कर किसी ने उसकी गोद में वेठते हुये कहा-- '*प्यरे ! नहीं, मैं हूँ शाकुन्तला 1”, सौदामिनी खिलखिला कर हस पढ़ी । न्तु भी खूब हे, मेथा कय है तेरे ?”” “वह्‌ क्या बाहर से सामान ला रहे हैं ?”* ॥ शकुन्तला एक घायल पत्ती की भाँति सौदामिनी के सीने से चिपक गद । र ` बोली--““ए्क मी पत्र नहीं मेजा सुरे, श्रौर सैया...!” सौदामिनी ने देस कर शङ्कन्तला के गालो पर एक हलकी चपतं जड़ दी, वे श्रौर भी सुख हो गये 1 । कि प्रर तभी भीतर से श्रा गया कमल ! प . शङ्न्तला को देख, वह टिठक गया । गोरा शरीर, इकहरा बदन, वैरो मेँ चप्पल ; बढ़ी सुन्दर लगी वह । और तभी कमल को देख, उसकी शोर इशारा कर बोली सौदामिनी-- “न्दं जानती हो १ ५ शङुन्तला चौकी । श्रपने प्रति कहे गये वस्यों.की मीमांसा वह क्यों करे? संभल कर गोद से नीचे उतरते बोली-- नहीं |” कि श्रौीर तब बताया सौदामिनी ने--'““यह हैं * मिस्टर कमल ! आप के भैया फ बड़े स्त 1१2 शकुन्तला ने उठ कर निकट पहुँच, धीरे से कहा-“'नमस्ते !”” कमल धारे से सुस्करा दिया । _.. . जि , > । & सौदामिनी वोली--““श्रोर - एक वात वताङ ? यह बढ़े भारी चित्र- » कार ह! व खडी हई सौदामिनी की रोर देख कर बोली थी शङ्कन्तला--“तव तो श्रापकी अवश्य ही...) क । . “खुप !” सौद नाराज्ञ-सी . हो गई थी । दोली--““यह है शङन्तला, मिस्टर कसल ! और आप है दुष्यन्त । कहीं उन्हों की भांति... शकुन्तला ,खूब खिलखिला कर हँस पढ़ी थी । छीर कमल ने तब्र शकुन्तला का मुँह लज्जा से लाल होता पाया था! रात खाना खाते बताया था सौदामिनी ने--'“शकुन्तला की - यह भाभी लगती है। चार दिन इये, चह श्रपने घर ग है ।”” इ०-२




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now