अरहंत प्रवचन | Arahant Pravachan

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Arahant Pravachan by रामसिंह तोमर - Ramsingh Tomar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ २ । चत्तारि लोगृत्तमा, भ्ररिहंता लोयृत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साह लोगुत्तमा, केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगत्तमो । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, भ्ररिहूते सरणं पन्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि, साह सरणं पव्वज्जामि, केवलिपरणत्तं धम्मं सरण पव्वज्जामि ॥३॥ चार मंगल ह -- अरित मगल हैं, सिद्ध मंगल हैं, साघु मंगल हैं, घ्ीर केचलि (तीथेकर) प्रणीत धर्म मगल है. । चार लोक मे उत्तम दै :--अरिददव उत्तम हैं, सिद्ध उत्तम हैं, साधु उत्तम ह, चौर केवलि प्रणीत (तीर्थंकर कथित) धमे उत्तम है । मैं चार के शरण जाता हूँ :--अरिद्न्तों के शरण जाता हूँ । सिद्धो के शरण जाता हूँ । साधुओं के शरण जाता हूँ। केवलि-प्रसीत धर्म के शरण जाता हूँ । श्ररिहूंतों का स्वरूप णदट्ठ चदुघाइकस्मो दंसणसुहणाणवी रियमईश्रो । सुहदेहत्यो श्रप्पा सुद्धो ्ररिदह्ौ विचितिज्जो ॥१॥ इय घाइकम्ममुक्को अरट्टारहदोसवज्जिश्नरो सयलो । तिहुवण भवणपईवों देउ मम उत्तमं बोहं ॥२॥ जिसके चार घातिक्मे--ज्ञानावरणीय, द्शनावरणीय, सोदनीय और अन्तराय नामक (आतम गुर्णो को घातने वाले)-मद्दाविकार-लष्ट होगये हैं र इसके फलस्वरूप जिसके अनन्त दूशन, अनन्तसुख, अनन्तज्ञान और झनन्तवीयें (शक्ति) ये चार अनन्तचतुष्टय उत्पन्न दोगये है तथा जो निर्विकार शरीर मे स्थित हू बह शुद्धाट्सा अरिद्दन्त कहलाते है वे सुमुन्नुओं के ध्यान करने योग्य हू | इस प्रकार यद्‌ चार घातिकर्मों से मुक्त आत्मा सशरीर होने पर भी जन्म, जरा आदि झटारदद दोपों से रदित दोता है। इसे ही दूसरे शब्दों में जीवन्मुक्त थवा सदे सक्त श्यात्मा कदते हैं। यद्द तीन भवन के प्रकाश करने के लिये प्रदीप स्वरूप भगवान श्ररिहन्त सुमे उत्तम वोध दें । (६) डव्य० ५० (२) भाव पा० १५०




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