ब्याज - बट्टा | Bayaj - Btta

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Bayaj - Btta  by अप्पासाहच पटवर्धन - Appasahach Patvardhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिद्धान्त-विवेचन १७ श्मकिस ( खजाने ) में ले जाकर उन पर ५७ की मुहर लगवा लेनी चाहिए आऔर इस तरह सालभर की वधि वदा देते समय १०० रुपयों के ९० रुपये दी वापस सिलने चाहिए। फिर से “= सन्‌ म उन ९७ के भी ९४७ प्रतिशत हो जायेंगे । चक्रवृद्धि का उयाज प्रत्तिवपे बटता दी जाता दै, तो यद चक्रवृद्धि का बद्राखाता प्रतिवपं घट्तादही जायगा। । उसका वह॒ चटेगा । यानि ५० या १०० साल मे भी मूलधन १०० मुद्राएं पूरा समाप्त न होकर उनका थोड़ा तो भी अश वचा ही रहेगा । हमारे यदो के नोट दलमलवीय पद्धति के होते दीद) श्रव शीघ्र ही रुपये और पैसे भी दशमलव-पद्धति के होने जा रहे हैं। फिर तो हमारे इस प्रतिशत घाटे का हिसाव भो सीधा वैठ जायगा ! तव्‌ रुपये के ९७ पैसे वापस दिये जा सकेंगे । इस तरह सुद्राओं और नोटों के प्रतिवर्ष क्रमशः घटते जनि पर साहूकार को थोड़ा-सा सूद मिले, तो भी कोई पत्ति नही । साहूकार द्वारा किसीका कजें पर दिये गये १०० रुपयों को वर्ष के न्तम ९७ की जगह ९८ या ९९ होने टीज्यि । कारण, दूसरे को कलं देना भी 'इंटरप्राइज' ( जोखिम ) ही हे । उसमे छं त्याग है । यह्‌ जोखिम उठाने या यह त्याग करते के लिए कदय प्रलोभन 'झावश्यक हो, तो उसे वह्‌ मिलने दिया जाय । (९ ) पुँजी किसे कहते हैं? ! मूलतः पूजी पैसा नहीं है । गाड़ी, मारा, किरती, रास्ता, रेल्वे, पुल आदि दी सच्ची पूजा हे। पूँजी का र्थं हे : श्रौजार या साधन । उचित साधनों से सानव की कार्यशक्ति कई शुना बढ़ जाती है| पूजो का अर्थ है, संचित श्रम-वल । अपना ब्याज का श्रम झाज की अपनी सुख-सुविधाओं की पूति में न , लगाकर क्षेसे साधनों या श्रौजारों के निर्माण में लगाया जाय, जिससे अपना कल का श्रम 'अधिक कार्यनम हो, तो उसीसे पूंजी तैयार होती है | भोधरे हेंसिये से कास करते रहते की छपेत्ता उसे ्रच्छी धार देने से की




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