अपरंच | Apranch
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
312
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सडकां दलदल कानी जाती म्हारे जुगरी
भासा नागी करियौ म्ह्न हत्यारां रे वीच
म्ह मामूली कीकर सक्तौहौ
इणासू' सासक सुरक्छित वेठेला म्हारे चिना
म्द उम्मीद कौ--म्हारौ जुग डौ इज गजरयौ
जिकौ म्ने दुनियां सू` मिच्ठियौ !
सगत्यां ही द्धी अर मंजिल ही ब्राघी
दीखती ही साव सफीट
पण म्हारी पूगणी मुस्किल इज हो
म्हारौ जुग अड़ौ इज गुजरयौ
जिकौ म्हने दुनियां सू भिचियौ !
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इण वाढ स् अकाञेक उपज्योडा थे
के जिकां में डूव नया हों महैं
जद म्हांत़ी कमजोरथां अर अंधारे जुग रू
वारं मे सोचौ- जिस् के थे वच निकठौ
जतां सू' वत्ता देस वदकता
वरगां री जिद-वेस सू गुजरयोड़ा म्हां
दुखी, जठँ अन्याव रं खिलाफ कीं रुकावट नीं ही
सार्थं ई न्हानं जारा लेवणी चाडजे कमीणा सारू
अंडी धिरणा के थोवड़ा विगड़ जावे
अन्याव रे खिलाफ गृस्सौ के गदा में घुट जावै आवाज
ओह म्ां, जिका भारईचारे री जमींत्यार करणी
चावता हा । खुद इज अजाण हा भारईचारे सू
पण थै, जद उण हालत तांई पुगौ
के आदमी, आदमी रौ मददगार व्है ~
महाण वारं में सोचौ, ती रियायत सू सोचजौ !
11 अपरंच -* ३६.॥
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