मानखो | Mankho
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
126
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(ट)
श्रावाज से रोकने पर नही सकते तो खेत की रक्षा के लिए लाटी का प्रयोगं आव्य
हो जाता है ताकि समाने पर न मानने वाने को अक्ति के प्रयोग ने समझाया
जाय । शक्ति की भाषा को यह ससार जल्दी श्रीर सरलता से समझता है ना
रण माडों करम जगत जाणी,
पण॒ हद रै नाक भालीज 1
डागर नी धिर दकाल्या जद,
नाट्या ही खेत रुबाट्टीजे ॥
नारद को इमी बात का दुःख है कि मानव को श्रपने अ्रविकारो कीरा
* के लिए युद्ध करना पढ़ता है जो मानव जाति के माथे पर एक बडा भारी कलक है -
अधिकार मानखं रो सिरे,
रण रोद्धा कद ताई होसी ।
श्रा किख ग्रो ज्ञान पाप,
कद मिनख निलाडी स्यू घोसी ॥
न इसके उत्तर मे कृष्ण का यह् तके है कि जवं तकं वलवान् श्रपनी जत्रित
के मद में चूर होकर दूमरो का धन, धरती श्रादि छीनने का प्रयत करता रहेगा,
“ तब तक युद्ध वन्दन होंगे --
लूठा लूटी चावे घरती,
जुद्धा रो रत किया श्रार्व ।
इसीलिए वे न्याय श्रौर वर्मं के लिए युद्ध का समर्थन ही नही करते वत्कि
उमे परम पुण्यं श्रौर परमार्थं मानते है --
रणा जद-जद लोक धर्म कारण
तो परम पुन्न परमारथ है ।
मरजाद मानवो राखण ने
। नर पूरा रो पुरसारथ है ॥
पर सुभद्रा भी महाभारत की श्रौर सकेत करते हुए युद्ध की शाइवतना स्वीकार
करती है । वह श्रजुन को कृष्ण के विरुद्ध युद्ध के लिए प्रेरित व तत्पर करते
हुए कहती है--
श्रकरम ही मेटणा ने, पारथ,
था वो रगत खिंडायो
मिनख धरम जुग-जुग जुश्यो है,
जद जद श्रकरम श्रायों ॥
हर लेकिन- वर्तमान काल मे भयकर सहार कारी घर्मी का नियंत्रण फ लोगों
के हाथों में झागया टै नो उसके सर्वथा श्रयोग्य दे । बावि मे इसी को ध्यान मे
रखते हुए नारद के मुख से कहलाया है --
न शः
‡ दु, च
ष
भ
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