संक्षिप्त जैन इतिहास भाग - 2 | Sankshipta Jain Itihas Bhag - 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
314
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)। ॐश्रीमहावीरयं नम्.
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संश्िप्ठ जन इतिहास ।
इसरा मांग ।
१० सन् पुरै ६०० से ३० सन् १३०० तक ।
फक्क ६
जनघमे सनातन है । उतका प्राकत रूप सरल सत्य है।
न धमका उमा नामकरण ही यह म्रगट करता हि | 'जिनु
पारत रूप । शठ्दसे उक्षा चिकास है; जिसका अर्थं होता
है 'नीतनेवाला अथवा ।विनयीः | दूरे शन्पोमे विनयी वीरोक्ष
घमं हयी जन घर्म है और यह व्याख्या प्रात सुकगत है। प्रकृतिमें
यह वात नेसर्गिक रीतिसे दृष्टि “इ रदी हे कि प्रत्येक प्राणी विन-
याकांक्षा रखता है | वद्द नो वस्तु उसके सम्मुख आती है, उसपर
अधिकार नमावा चाहता ‡ ओर अपनी विजयपर् भानन्द, नृल्य
करनेको उत्सुझ है । अवोध वारक मयानकसे भयानक वस्तुको भपने
काचूमें लाना चाहता है। निरीह वनस्पति के लीजिये । ए घाप्त
सपने पापतवाङी घाप्रको नष्ट करनेषर चरी हई मिती है । इष
वनस्पतिभ भी अवश्य जीवे ३; परन्तु बह उप्त उत्छृष्ट दशमे नी
है, निक्तमे मनुष्य दै ! शि इतना होते इये भी वह प्रतिक
चै
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