तत्त्वार्थ सूत्र | Tattwarth Sutra

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Tattwarth Sutra by सुखलालजी संघर्षी - Sukhalalji Sangharshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ पर जब इस विशार सोजना नें मध्वम मायं का शपः प्रका तब उसके पीछे को दृष्टि भी कुछ संकुचित हुई । फिर मी मैंते इस सध्यमभार्गी विवेचन पटति मे मस्य रूप से निम्न बातें ध्यान में रखी है (१) किसी एक ही प्रन्थ का अनुवाद या सार नहीं लिख कर या किसी एक ही सम्प्रदाय के मन्तव्य का बिना अनुसरण किये ही' जी कुछ आज तक॑ जेन तत्वज्ञान के अङ्ख स्वरूप पढ़ने में या बिचार में आया हो,. उसका तटस्थं भाव से उपयोग कर विवेचन लिखना । (२) महाविद्यालय या कॉलेज़ के विद्याथियों की जिज्ञासा के अनुकूल हो तथा पुरातन प्रणाली से अभ्यास करनेवाले विद्याथियों को भी पसंद मावे इस प्रकार साम्प्रदायिक परिभाषा कायम रखने हुए उसे सरल कर पथक्करण करना । (३) जहाँ ठोक प्रतीत हो और जितना ठीक हो उतने ही परिमाण में संवाद रूप से और दोष भाग में बिना संवाद के सरलतापुबंक चर्मा करनी।। (४) विवेचन मे सूत्रपाठ एक ही रखना और बह भी भाष्य स्वीकृत गीर जहाँ जहाँ महत्त्वपूर्ण अर्थभेद हो वहाँ वहाँ भेदवाले सूत्र की लिखें कर नीचे टिप्पणी में उसका अथं देना) (५) जहाँ तक अधेदृष्टि संगत हो बैसे एक या अनेक सूत्रों को साथ लेकर उनका अथं लिखना और एक साथ ही विवेचन करना । ऐसा करते हुए बिषय लम्बा हो वहाँ उसका विभाग कर शोक द्वारा वक्तव्य का पथक्करण करना । (६) बहुत प्रसिद्ध हो वहां ओर अधिक जटिलता न आ जाय इस प्रकार जैन परिभाषा को जेनेतरपरिभाषा के साथ तुलना करना | (७) किंसी एक ही विषय पर जहां केवल दवेताम्बर या दिगम्बर या दोनों के मिल कर अनेक मन्तव्य हों वहाँ पर कितना भर क्या लेना और कितना छोड़ना इसका निर्णय सूत्रकार के आशय की निकटता और विवेचन के परिमाण को मर्यादा को लक्ष्य में रख कर स्वतन्त्र रूप से' पल पर ग गत पी १. अब ऐसी टिप्पणियाँ सुत्रपाठ में दी गई हैं ।




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