स्वामी रामतीर्थ | swami raam teerth

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुलद कि जंग ? गंगा-तरंग १६ शप सबं षं्तुयं देश्ष, फाल, वस्तु के द्वारा वर्णन की जाती हैं । सब व्यवदार त्यादि का निर्भर इन्हों पर है। आप दैश्ष, कालः चस्तु को अन्य वस्तुओं के समद में क्यों गणना करते (2 प्‌ उत्तर्‌--अप यद वतला१ तुम्हार देशा, काल, बस्तु ` फा नित्य ओर स्थिर्पन स्वप्न ओौर सुपुत्ति में कहाँ जाता; £ ? जाप्रच्‌ के अनुमच के! सत्य स्वीकार करते है, पर क्या खण तुम्दारी वैक्ती ही, वरन्‌ जाभ्रत्‌ से भी वदृकर वलवान्‌, अवस्था नदीं ट? छपुत्ति का तुम पर क्या अधिकार नहीं है ? जितनी देर जाय्रतू अवस्था रदती है; लगभग उतनी ही देर खुपुप्ति का राज्य रदता है। चाल्यावस्था का काल ते सब का सब एक लंघी सुपुप्ति दाता है, त्यु के प््चात्‌ बुत देर सुपुप्ति का राज्य रहता है। इस सुपुप्ति के अनुभव का किसी गणनापंक्ति में न लाना न्याय की इत्या करना हि । धु तुम्हारी मुदकं कफर, दाथ-्पव गोध कर यह पाठ नित्य पढ़ाती दै कि देश कार वस्तु सत्य नर्दः सत्य नहीं; केवल देखने मात्र के हैं, दिखावटो हैं । पल निकाल्या जगतू का; खुपुप्त्यवस्था मादि 1 नाम रूप संसार की, जांदिंगंघ भी नाहिं ॥ यदि स्वप्न ओर सुषुत्ति फे अलुमव के आप जाकरं कट्‌ देते हा फि-यह दूर 8, ते जाग्रत्‌ के अलुभव फो मी झूठ कद देना आवइयक. है; क्योंकि स्वप्न 'और सुषुस्ति' के विद्वाख खे धह भौ उड़ जाता दे जाप्रत्‌ काजगत्‌ यदि संक्चा हाता, त खुषुत्ति अवस्था में भी बना रहता, क्योंकि “सत्य ते व है जो सदा पक रख, स्थिर -और विंदमात रहे 1:




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