हिंदी नाट्य चिंतन | Hindi Natya-chintan

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Book Image : हिंदी नाट्य चिंतन  - Hindi Natya-chintan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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नाव्थ कला एवं साहित्य फी <प-रेखाएँ १३ 1111711 11/1711111/ 111 17111111 1111 11111111 11111111 छो वट देता है। उसकी रचनाधों में रखता, सरसता रहती है क्योंकि बिना इनके ब६ कलाकार ही नहीं हो सकता । उसको रचनाओं से भानव-कएबाण, विश्व-द्वित-सेवा होती है कथा कि निस्वा्थ भाव से जो. चष्ट हमे देता है उसमे निस्वार्थंच, मुक्तटदथता के का८« सत्य से परे कोई चीन रद्द ही नहीं सकदी और सत्य जिसकी ससार मेँ अनस्य कनी है और जरूरत है हर्मे सेवा, सार्व्वना धर न्याय देकर हमारी-निस्व फो-महती सेवा करता है । उसकी रचनाओं से युग बने हैं; समन होता है क्योंकि व, उसकी कला, हमारे अध्ययन, अजुशीलन, अयुकरण और मचन की वस्तु बन जाती है । फलाकार-सष्वा कललाकार-कला की झारा धना करेला ह्या भी जोवन से निलग नदी होता इसलिए “कला नीवन के लिये और कणा कसा ॐ सियेः एने कोद चन्तर नहीं है । भन्तरं तो कलाकार के अयुकरणकर्ता 'पने मन के ्लुदल आदेश कलाकार चुनकर उसके एकॉंगीपन को अपनी रचनोधथों में प्राघान्थ दे देते हैं तब प्रवेश पा लाता है । कल्ताकार का अयुकरय.कत्तां झधत्रा छाया कलाकार जब मनमौनी भवोरंनन-िय होता है तब वह कला मे मनोरंनन की दही उर्ूभाचना करता है । वह कला का यद्दी उद्देश्य सावता और करू कार के. इसी की साधना किया करता है । वह सोचता है कि अनुकरण-वंत्ता आनन को -- जस्त नन नें यदि ९५ भर के सि९ उसके विषाद से,दु खों से, दुर्श्विताथों से, क्य से, हटाकर ६५ प भर के सिये सुख ( सुखाभास), वति (शांति की छाना), संतोष (संतोष का अपहा) दे सकते हैं तो कथा बुरा करते दे? बचन का हाललावाद्‌ इसी एकॉगीपन ना ही परिणाम है । इसमें जीवन को सब थोर से नष्टी देखा गया है । वास्तव में यह भावन। तो मदिरा ङे समान ही ररि मनोरंजन देती है । सतत, ठोस मानव-




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