श्री भागवत दर्शन भाग - 90 | Shri Bhagwat Darshan Bhag - 90

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १५) होगी । चौयेजी ने मरे मेले मे उतारी जूती 'और उनके सिर पर तडातड जमा द । तुरन्त पुलिस ने न्दे पक्ड लिया । श्वच उन पर भियो क्या लगाया जाय ! जूती मारनेका श्नभियोग लगाने से तो भारताय जिलाधीश का घोर श्रपमान हे । फिर न्यायालय भे चे केसे कहते, कि मेरे इसने जूती लगाई हैं। अतः उन पर चोरी करने का मिथ्या श्मभियोग लगाया गया । उसने न्यायालय मे स्पष्ट कह दिया- मैने चोरी फोरी कुछ नहीं की । भारतीय ज्ललाधीश के दो जृतियँ लगायी थी ।» न्यायाधीश भला श्रादमी था, बह भी सच जानता था, देस पडा। किन्तु साधारण जेल का दण्ड तो उन्हें दिया ही गया। हाँ तो मैं अमन सभा की सार्वजनिक सभा मे पहुँच गया श्र खडे होकर कुछ पूछने लगा । उसी समय उस सभा के सचालक जो एक मुसलमान कलदोपजीवी अधिवक्ता थे, मेरे पाख श्राव, मेरा कान पकडकर सभा से बाहर घसीटते ले गये । जिलाधीश 'अध्यक्त कै श्रासन पर नीचा सिर किये हुए देखता रहा । उसने एक भी शब्द नहीं कहा । बाहर ांकर मैंने उसके प्रति- पत्त मे पास ही दूसरी सभा की, व्याख्यान देने लगा। जो सभा में लोग बैठे थे, मेरे श्रपभान से सव दुखी थे, किन्तु भयवश कुछ कर नहीं सकते थे, एक एक करके सभी वहाँ से उठकर मेरी सभा में झा गये । जिलाधीश चुपचाप उठकर अपनी गाडी में बैठकर चला गया, खिसक गया कना अधिके उपयुक्त दोगा, क्योंकि उन दिनों भीतर ही भीतर अेंगरेज भयभीत रहने लगे थे । ऊपर से निर्भयता दिखाते थे । ये सव उपद्रव इसलिये करता था, जिससे किसी प्रकार पकड़ा जाऊँ। नेतागीरी से वचित न हो लाई । उन दिनो दिन मुसलमानों मे स्वाभाविक ही बडा स्नेह दो गया था। रोरी कु ज क ष „^~




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