मिश्रबंधु - विनोद भाग - 1 | Mishr Bandhu Vinod Bhag - 1

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Mishr Bandhu Vinod Bhag - 1  by गणेशविहारी मिश्र - Ganesh Vihari Mishr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भूमिरा ` $ पाटकों को. प्रस्येक फचि पी. बटाई-छोटाई का यहुन कम क्ञान डॉ सपता । यई पदाना फे प्ररसनीय-माय फटने से उनमें 'प्रपाद्धत प्रशंसा की साथ फो भेद वेन दो बहुन दषु पिना समन्ञनदी शा सदा । उधर सेसी-पिसाग स्थिर परने से यद भेद यहुत सीघ, दो दी शय्दो हारा, प्रकट ष जाना, शार विना श्रेनी.दिमाग के वर्णन यदरामि से घर बार पूर्ण ध्तर समस्त से या लाना कठिन है । सरोजकार एवं भाषाओं के न्य इलिएसयारो ने श्रग्पी-जिभाग स्थिर फिए पिना दो फप्रियें। की ध्रसासा की हे । इन प्रसंसाय्या से पिया दनाय मे कर्यो या श्पष्ापून गरिमा था भेद क्षात नी दोना । इसी धारण से इमने पिसी-प्राचीन प्रसाग के 'प्रभाय सें में। श्रेर्पी-पिभार चनानि फा सादरम क्या है । घ्रनेक सम्जन इससे इस यवारण यटुत उठ सुप्ट भी दो. गए है, पर दम्प सर्पो दूरा ठग उन्दोंने नहीं स्थिर दिया कि फंपियों की 'ग्रापेशिफ छोटाई-पड़ाई फसें य्यना फी जाय दन म्रग्ी-अधा को एम नहीं हटा सकने । प्रनियो म रण्यते कै विदाम मे हमने फेयल याय्य-पीड़ला पर ध्यान दिया है, एय “फपियों के सदासा या मारन प्रादियेने पी दष थी पररा नया पा, पेयल धेने णमे नष्टाग्यो फास परग एमन पि मी श्रेणी में नदी रफया । श्रेणी नियए फरने में सतसेद टना स्यामागिर् 7, प्योर इसमें भगई की यो 'यायरययला नहीं । सभी स्थानों पर एमारे सेररा से पपि फी किसी श्रेसी-पिशोष से स्थिति के कारणो नहीं सिलेंगे। एस मधान पर ये स्थितियों मारी 1 सर्सति-्साम प्रकट करती 7, तो उनः रियो की फपरिया टेसयने से स्थिर हुईं । यदि वो ससाशय दिलरी यपियों वे माथे पढेफर मार मनप शपा मानतो दन उने कय नहीं पहना है । श्रेरी-दिभाग उन्दी लोगों दो लाभदायप रो सफलता हि, जिनोंने इन फपियों में भय ने देर हो, श्रथ जो सारी यारउन्कपननपीन सर्सनिनताय को मरा साले । पिद्रसनो ये म्रयायनोसन से न सम्ससियों के फारण स्यथ उक या लाएंगे, कयोदि गभासाध्य पूर्ण पिणार ये याद ही सम्ससि हो गए है । प्रारयेस स्थान पर यारए लिग्नेमे ग्रथ ङ विन्नार रहा प्थिक यढ उपना । पाष्योगरन दमे चता, गरोर डोप कैप साने जासे हैं, डरा यु या एन नृरिति में भागे सिरेगा 1




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