आत्मा की आवाज | Atama Ki Awaz
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रास्मा की श्रवाय 3]
उत्तर नहीं मिला । तीन दिन के वाद में वंत्ई गया, मारवाडी नेता श्री
निवासजी माखरीया वगड वालों के पास ठहरा, उनको पिलानी की घटना
सुनाई गौर कहा किसी भी प्रकार महात्मा गावी से मिला दो । माखरीया
जी ने कोशिश की परन्तु सफलता नहीं मिली, दुसरे दिन मेने यरवदा जेल के
पत्ते पर गांधीजी को पत्र लिखा कि मैं राजपुताने से आया हूं, अछूतो के बारे
में जरुरी परामर्श करना है, माखरीया की गही का पता दिया था, तीसरे ही
दिन जवाब गाया कि सोमवार को दिन के १ वजे पांच मिनट के लिये यरवदा
जैछ पुना आकर मिल सकते हो, महू!देव भाई गांधीजी के सेकट्री का पोस्ट-
कार्ड लिखा हुआ था, मोहन दास कर्मचन्द गांधी के दस्तखत थे यरवदा जैल के
अंगरेज सुपरीडेन्ट मि. विलसन की मंजुरी थी, । पत्र पढते ही श्री माखरीया
जी भौर लोगों ने मेरे को वघाइ दी, । मैं पुना गया, गाड़ी में कालेज की
लड़कियों की ही भीड थो, शायद जनाना डिव्वा था, कुछ देर तो शमिला सा
हुआ बैठा रहा, लड़कियों में फल मेवा उड़ रहा था हंसो खुशी का माही था
पास चैठी एक युवती ने पुछ ही लिया कहाँ जा रहे हो. तो मने कहा गाँघीजी
से मिलने के लिये यरवदा जेल में, तो आस पास वैठी सब लडकियां मजाकिया
तौर पर हंसने लगी, मेरे को वुद्ध बनाने लगी, मैंने गाँधी जी वाला पोस्ट कार्ड
दिखाया तो बडी प्रभावित हुई मेरा मान सम्मान भादर करने लगी कुड़ते
दोनो जेवे सुखे मेवों से भर दी, सव वहने गुजराती थी, पुना स्टेशन पर बन्द
मातरम के नारे लगे । मैं ताँगे वाले के पास गया कोई भी तांगा वाला
यरवदा जैल के पास जाने को तैयार नही हुमा उनकी पिटाई हो चुकी थी ।
आखिर एक मराठा युवक तांगे वाले ने हिम्मत की जल से पांच सौ कदम
की दरी प्रर उतार दिया, भयानक जंगल था, आगों के पेड़ों की संख्या ज्यादा
थी, मैं यरवदा जेल के सदर दरवाजे के करीब सो गज दुरी पर गया तो एक
महा पुरुप खदरवारी बेठ हुवे थे उनसे वन्देमातरम् हुई, मैने गांधी जी वाला
पत्र दिखलाया तो फरमाने लगे, मैं तो कल से दौठा हूं मेरा पत्र वापू तक नहीं
पहुंचाते न मिलने की भाज्ञा देते हैं । मौने कहा आप मेरे साथ चलिये, केवल
पांच मिनट वाकी रहेतो पत्र लेकर संतरी की तरफ वडा संतयो जंगलो
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