धर्मबिंदु | Dharmbindu
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
506
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
उनके पास दीक्षा ली थी । सूरिजीने स्वयं उनको व्याकरण सहि्य
और दर्शन शाछ्रोंका अम्यास करवा कर निपुण बनाये थे |
सूरिजीके सत्ताकाठमें बौद दशनकी प्रवढता थी। कितनेक
देगोंमें बौद्ध धर्मने राजाश्रय प्राप्त कर लिया था । मंत्र और तंत्रके
प्रभावसे वौद्ध दु्शनका प्रसार उस कालके जनसमुदायमें चड़ी शीघ्र-
तासे हो चुका था | जैनोके साथ वे वड़ी स्पर्धा कर रहे थे। थुक्ति
जव चार हो जाती थी तव वे तांत्रिक प्रयोग जुटाते थे और अपनी
बोठबाछा ऊडाते थे । वौद्ध दर्शनके अभ्यासके शरिये बौद्ध बियो
सब प्रकारकी सुविधा मिलती थी और इसलिये विद्यार्थीगण
घड़ी संख्यामें मकर वहीं विद्याध्ययन करता था । उसमें पढ़े
हुए विंदयार्थीकी प्रतिष्ठा सर्वमान्य होती थी । सूरिजीके शिष्य हंस और
परमहंसको भी इस कारण वौद्ध विद्यापीठमें जाकर बौद्ध जनका
ज्ञान प्राप्त करनेकी वदी आतुरता होने लगी । उन्होंने अपनी मनोगत
भावना सूरिजीकों व्यक्त की । निमित्तशाख़के ज्ञानसे उन्होंने
भाविकाठमे आनेवाला अपाय जानकर उनको भ्चुमति नहीं दी |
भवितन्यताी आंधी विवेकनील आत्मको भी चाची कर् घीसट
ठे जात है । वे अपनी घूनमें सवार होकर वौद्ध विद्यापीठमे चछ पढे
वौद्ध विदापीठमें बौद्ध मिक्षुका वेष बदल कर ही वे रह सकते
थे । हस सौर परमहस कमशः वौद्ध दरौनकरा अभ्यास करने लगे ।
वे विद्वान तो थे ही और दर्गनोका अभ्यास भी उन्होंने किया था;
इसलिये वीद्ध प्रन्थोके मम पर उन्होंने अपना ध्यान जुटाया । अपनी
अतुल बुद्धिमभासे थोडे समयमें रहस्य पग्रंथोको उन्होंने कंटस्थ कर
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