धर्मबिंदु | Dharmbindu

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Dharmbindu by समदर्शी आचार्य हरिभद्र - Samdarshi Acharya Haribhadra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ उनके पास दीक्षा ली थी । सूरिजीने स्वयं उनको व्याकरण सहि्य और दर्शन शाछ्रोंका अम्यास करवा कर निपुण बनाये थे | सूरिजीके सत्ताकाठमें बौद दशनकी प्रवढता थी। कितनेक देगोंमें बौद्ध धर्मने राजाश्रय प्राप्त कर लिया था । मंत्र और तंत्रके प्रभावसे वौद्ध दु्शनका प्रसार उस कालके जनसमुदायमें चड़ी शीघ्र- तासे हो चुका था | जैनोके साथ वे वड़ी स्पर्धा कर रहे थे। थुक्ति जव चार हो जाती थी तव वे तांत्रिक प्रयोग जुटाते थे और अपनी बोठबाछा ऊडाते थे । वौद्ध दर्शनके अभ्यासके शरिये बौद्ध बियो सब प्रकारकी सुविधा मिलती थी और इसलिये विद्यार्थीगण घड़ी संख्यामें मकर वहीं विद्याध्ययन करता था । उसमें पढ़े हुए विंदयार्थीकी प्रतिष्ठा सर्वमान्य होती थी । सूरिजीके शिष्य हंस और परमहंसको भी इस कारण वौद्ध विद्यापीठमें जाकर बौद्ध जनका ज्ञान प्राप्त करनेकी वदी आतुरता होने लगी । उन्होंने अपनी मनोगत भावना सूरिजीकों व्यक्त की । निमित्तशाख़के ज्ञानसे उन्होंने भाविकाठमे आनेवाला अपाय जानकर उनको भ्चुमति नहीं दी | भवितन्यताी आंधी विवेकनील आत्मको भी चाची कर्‌ घीसट ठे जात है । वे अपनी घूनमें सवार होकर वौद्ध विद्यापीठमे चछ पढे वौद्ध विदापीठमें बौद्ध मिक्षुका वेष बदल कर ही वे रह सकते थे । हस सौर परमहस कमशः वौद्ध दरौनकरा अभ्यास करने लगे । वे विद्वान तो थे ही और दर्गनोका अभ्यास भी उन्होंने किया था; इसलिये वीद्ध प्रन्थोके मम पर उन्होंने अपना ध्यान जुटाया । अपनी अतुल बुद्धिमभासे थोडे समयमें रहस्य पग्रंथोको उन्होंने कंटस्थ कर




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