स्वप्न - दर्शन | Svapn - Darshan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15 MB
कुल पष्ठ :
260
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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भूमिका
जीच अपनी वासनाझओोंकी प्रेरणासे इस निकृष्ट शरीरके बाहर
विचरता है और बासना जहां लेजाती है वहां जाता हे । यहां पर
जानाः ओर उसके पय्याय “शरीरके बाहर विचरना' का
प्रयोग दो अर्थोंमिं हुआ है । साघारणतः दिकू_ प्रदेश पार करके
स्थानसे स्थानान्तर पर पहुँचनेको जाना कहते हैं । यदि किसी
स्थल या घटना या म्यक्ति विशेषके अरति बहुत उत्कट वासना
तो इस प्रकारका गमनभी संभव हे । यद गमन लिङ्ग झरीरसे
होगा, दिग. शरीर सूक्ष्म भूतोंका बना होता दै, इसलिए
उखका वेग तीत्र होता है, लम्बर दूरीको जल्दी पार करता ह ।
लिंग शरीर स्थूल शरीरका समाकार होता दै । उसमे इन्द्रियो
होती हैं, इसलिए देख सुन सकता है । लिंग: दारोर बाहर त .
कर भी स्थुल शरीरक्रा नियन्त्रण करता रहता है । ` परन्तु ` कौ
ऐसा हो सकता है. कि पुनः स्थूठ शरीरमें प्रवेश न कर सके ।
यदि स्वप्न देखने वातेको जोरसे हिक्का दिया जाय ओर
उस समय उसका छिग शरीर वारो तो प्राणकी डोरकं द्द
जानेकी अआसंका होती है । यदि ठेसा हृच्रा तो मृस्युहो जायगी ।
स्पप्नद्रष्टाको धीरेसे ही जगाना चाहिये । वासना प्रेरित जीव
. सुदूर देश या कालान्तरमें घटने वाली घटनाकी ङ्ग शरीरमें
` अर्त छरनुभूतिके संस्कारको जवं स्थूल देके मस्तिष्के उतारता
है तो स्वप्न देख पडता है 1 44
किसी किसी अवस्थामें छिंग शरीरसे काम लेना अनिचये =. `
हो जाता है.। यदि किसी खदयोखतव ( तत्का मरे ) घाणीका
चिन्त किसीके प्रति उत्कट रूपसे छगा है तो वह लिंग शरीरसे . `
ही उसके पास पहुंच सकता है । पहुंचनेमें देर भी नहीं ख्गती।
वहां पहुंच कर वह. या तो उसको जामत् अवस्थासें ही
रूपसे देख पड़ जायगा या उसके सोते मस्तिष्को प्रभावितं
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