स्वप्न - दर्शन | Svapn - Darshan

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Svapn - Darshan by राजाराम शास्त्री - Rajaram Shastri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। क्षः व लक = व नकिवकपप्सिु प म न नि यमन मं क श न ध न डा दा प --- =>. त क~ > अ. +~ क स्स म = 1 की सफल िफप धलसर रथ न निन 6 न न न य म ~ सर सदसपासिद ५ 1 । कि) क. २. न्न = बा पद ९ न त द ५० ४६ #.....” रा. उस र्िसटकिद उनहरिसियड नई री भूमिका जीच अपनी वासनाझओोंकी प्रेरणासे इस निकृष्ट शरीरके बाहर विचरता है और बासना जहां लेजाती है वहां जाता हे । यहां पर जानाः ओर उसके पय्याय “शरीरके बाहर विचरना' का प्रयोग दो अर्थोंमिं हुआ है । साघारणतः दिकू_ प्रदेश पार करके स्थानसे स्थानान्तर पर पहुँचनेको जाना कहते हैं । यदि किसी स्थल या घटना या म्यक्ति विशेषके अरति बहुत उत्कट वासना तो इस प्रकारका गमनभी संभव हे । यद गमन लिङ्ग झरीरसे होगा, दिग. शरीर सूक्ष्म भूतोंका बना होता दै, इसलिए उखका वेग तीत्र होता है, लम्बर दूरीको जल्दी पार करता ह । लिंग शरीर स्थूल शरीरका समाकार होता दै । उसमे इन्द्रियो होती हैं, इसलिए देख सुन सकता है । लिंग: दारोर बाहर त . कर भी स्थुल शरीरक्रा नियन्त्रण करता रहता है । ` परन्तु ` कौ ऐसा हो सकता है. कि पुनः स्थूठ शरीरमें प्रवेश न कर सके । यदि स्वप्न देखने वातेको जोरसे हिक्का दिया जाय ओर उस समय उसका छिग शरीर वारो तो प्राणकी डोरकं द्द जानेकी अआसंका होती है । यदि ठेसा हृच्रा तो मृस्युहो जायगी । स्पप्नद्रष्टाको धीरेसे ही जगाना चाहिये । वासना प्रेरित जीव . सुदूर देश या कालान्तरमें घटने वाली घटनाकी ङ्ग शरीरमें ` अर्त छरनुभूतिके संस्कारको जवं स्थूल देके मस्तिष्के उतारता है तो स्वप्न देख पडता है 1 44 किसी किसी अवस्थामें छिंग शरीरसे काम लेना अनिचये =. ` हो जाता है.। यदि किसी खदयोखतव ( तत्का मरे ) घाणीका चिन्त किसीके प्रति उत्कट रूपसे छगा है तो वह लिंग शरीरसे . ` ही उसके पास पहुंच सकता है । पहुंचनेमें देर भी नहीं ख्गती। वहां पहुंच कर वह. या तो उसको जामत्‌ अवस्थासें ही रूपसे देख पड़ जायगा या उसके सोते मस्तिष्को प्रभावितं 2 छ] य 1 रा ५ ग त 3; 6 0 1 डर जे 4 किक 4 (^ ल्उ 1 2 ८. 1 1 कि (वः, 1 // ,, , (न दि; -, “ \ ¢




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