बसंत बहार | Vasant Bahar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vasant Bahar  by पुष्पेंदु जैन - Puspendu Jain

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पुष्पेंदु जैन - Puspendu Jain

Add Infomation AboutPuspendu Jain

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
मेरे जीवन का पतझड़ मी आज बसत बहार बन गया जज निठर व्यवहार किसी काः मुझको छ कर प्यार बनं गथा) का. मादक मधुवन था आख पसारे, मनं की केवल एक लहर पर मै यौवन देख रहा मैने चम लिए अगारे, आत्मसमर्पण करके लेने पीडा का उपचार चला मैं, अपने भन की आतुरता से जीती बजी हार गया मेः आकुल अतर की पीड से गीतो का ससार बन गया । १४




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now