श्री सीताराम प्रेमप्रवाह | Shri Sitaram Prempravah
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
272
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)-- ीप्रेमप्रचाद 28-- | (३)
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गुण गाहक हो दोष दलन हो रखते जनद्ी लाज ।
जग जलनिधन्ते पार लगानेको है आप जहाज ॥
अश रणशरण परतित- जन-पावन तारण तरश उदार ।
नवलकमलदल-अर्ण सदुल पद् वन्दो वारंवार ॥
शरण सुखद मुझ दीन दासके प्रण करो सब काम ।
_ सियरघुनन्दन संहित प्रेम नित करो हृदयमें धाम ॥२॥।
जयति युरु करुणा-पारावार ।
अवधपुर जानकेघार निवासी मक्त जन सन्तन पाणाधार ।
जीव वहू पमु संमुख नित करहि विरद् हे जिनको अधम उधार
नाम श्रीरामचल्लभाशरण जपतः ही पावे जन फल चार ।
भेम तिन चरणन मेँ (चतत राखु सहज जेषं भवर सागर पार ॥३॥
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जयाति युर मगल मोद निधान ।
रामवज्ञमाश्रण सुहावन शरण सखद पावन अभिधान ।
गोरवणं तन जलज विलोचन अति प्रसन्नमुख सदा अमान |
चितवनि ललित छपा परिपूरण दासन देहं अभय वरदान ।
जीव उधारण कारण तस्पर सन्तत तारण तरण सुजान ।
रघुनन्दन-भक्तन सन्तनके मन सीननके जीवन घ्राण ।
सजल्ल जलद वर वरण रामघनके चातक है ज्ञान-निधान ।
त्य अहह ते सुजन परेम युत करहि निरन्तर यरु गुण गान ४
प्यारे घाखी निशिवासर गुरु चरणनकों ध्यान ।
जो परलोक लोकके भीतर चाहत है कल्पाण ॥
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