श्री सीताराम प्रेमप्रवाह | Shri Sitaram Prempravah

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Shri Sitaram Prempravah by वंशीधर मुरलीधर जौहरी - Vansheedhar Murlidhar Jauhari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-- ीप्रेमप्रचाद 28-- | (३) त 4 गन चन्दन भर पी कर ७ के = #' गुण गाहक हो दोष दलन हो रखते जनद्ी लाज । जग जलनिधन्ते पार लगानेको है आप जहाज ॥ अश रणशरण परतित- जन-पावन तारण तरश उदार । नवलकमलदल-अर्ण सदुल पद्‌ वन्दो वारंवार ॥ शरण सुखद मुझ दीन दासके प्रण करो सब काम । _ सियरघुनन्दन संहित प्रेम नित करो हृदयमें धाम ॥२॥। जयति युरु करुणा-पारावार । अवधपुर जानकेघार निवासी मक्त जन सन्तन पाणाधार । जीव वहू पमु संमुख नित करहि विरद्‌ हे जिनको अधम उधार नाम श्रीरामचल्लभाशरण जपतः ही पावे जन फल चार । भेम तिन चरणन मेँ (चतत राखु सहज जेषं भवर सागर पार ॥३॥ | जयाति युर मगल मोद निधान । रामवज्ञमाश्रण सुहावन शरण सखद पावन अभिधान । गोरवणं तन जलज विलोचन अति प्रसन्नमुख सदा अमान | चितवनि ललित छपा परिपूरण दासन देहं अभय वरदान । जीव उधारण कारण तस्पर सन्तत तारण तरण सुजान । रघुनन्दन-भक्तन सन्तनके मन सीननके जीवन घ्राण । सजल्ल जलद वर वरण रामघनके चातक है ज्ञान-निधान । त्य अहह ते सुजन परेम युत करहि निरन्तर यरु गुण गान ४ प्यारे घाखी निशिवासर गुरु चरणनकों ध्यान । जो परलोक लोकके भीतर चाहत है कल्पाण ॥




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