जैन तत्त्वसार सारांश | Jain Tatvsar Saransh

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Jain Tatvsar Saransh by प्रेमकरणजी मरोटी- Premkaranji Maroti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१३ चौमासा विया, षहा से विचरते ह्वे फलोदी पथारे र स १९५६ का चौमासा फ्लोदी किया, बाद में दिद्दार कर के वीकनिर परे, वदां पर स॒ १९४७ वा. चोमासा बाकनिर में किया. वादे विहार क्र के 'जतारण पधोर, बद्दा पर स १६५८ की चोमासा किया बाद में छापधी सिष्य परिवार के साथ विहार करते हज, गोटवास छ पव तीर्थां शर्ते हशर फनोदी निवासी सेठ फुलचदजी गोलिच्छा के भ्रीस्प ॐ घाबमें सिद्धाचलजी पोरे सैनी पुनम की यात्रा की बाद में १९५९ वा चौंमासा पालाताणा में क्या, बाद में विद्दार करते हुए गिरनार वगरदद तीर्थी की यात्रा चर के स १६६० वा चीमासा पोरबदरमें किया, याद में विहार कर के वच्छ देश में पधारे मौर पाच वर्प तक कच्छ म रे कच्छ मुद्रा, मोदी, बिदष्धा, भादिया, श्नजार यगरे शदर म चेमासे परिये, भोर पाच जमद पाच उपधान क्रयि, श्नौर साधु साध्व केरे दस मो दात्नादी धदर्मे बिहार कर के भावी परि, श्राप सद्उपदेश से पालाताणोका शघ सेठ माथामादूने निचला, वहा पर १७ टाणके ससुदायसे ख १९६६ भ चौमास। क्रिय शरोर नदाश्वर द्वीप शौ सचना हुई थोर साधु साष्वी पाच वे दीक्षा दी घाद मे बिदार करे जामनगर परे, स १९६५ म जामनगर्‌ में चौमासा क्षिया वहा पर उपधान धामधूम से हुश्या जर चार दीनता हुई, वाद में विद्दार करे मोरी पधरि, स १९६८ मोरवीमें चौमासा किया घाद्‌ विर्‌ कर के भोयणी, शखेश्वरकी यात्रा बर के श्दमदावाद पधारे स १९६६ का चौमासा श्रद्दमदावाद में स्यि बाद में विद्वार कर वे तारगाजी वगैरइ की याना कर्‌ कै खमते पथे, वहा की यारा क्रये पालाताणा पधारे, स १९७० का चामार परलाताखा में रदे उस वस्त रतलाम मेके सेट चादमलजीकी धर्मपली बाई एुल्ुवरयाईके श्रापरदसे चौमाने भ॒ भगवतो सप्र षाथ ओर उपधान कराया, सेठाणीजीने मोदरों ( गीनी } की प्रभावना थी, साधर्मिवच्छल काया वादमें श्रापश्री विददार कर्‌ के भावनगर, तलाजा बगेरइ तीर्थ की यात्रा करते हुआ सभात पधार बहा पर सुरतवाले पानाचद्‌ भयुभाइ विनती के ल्यि श्राथरे, उन का विनती स्वीकार करके विदार्‌ फर




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