भक्त नरसिंह मेहता | Bhakt Narsingh Mehata

Bhakt Narsingh Mehata by जीवनलाल अमरसी महता - Jivanlal Amarsi Mahata

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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र ९ चूँजी 1 बुद्धि, होशियारी, चतुराई आदिको वेतन, फीस, कीमत आदिके | चेचते हैं और धर्मयुरुकों दक्षिणाके रूपमें उसके उपदेशको दी जाती है । विद्याइचिके ये धंदे विशेष सम्मानके माने जाते न्तु इनमे शैला चाहिए टाभ नहीं होता । न हो, परन्तु इनकी पकता बड़ी भारी ६1 ये योग उन सब विद्या्ओंको बड़े परिश्रम रचसे खरीदते हैं और इस रूपमें बेचते हैं । प्रन्यान्प फुटकर फाम । दटाठी, आाइत बंगेरद छोटे-बड़े अनेक र काम-धंदे हैं । उनका मददत्व कुछ कम नहीं है, परन्तु इस सी पुस्तकमें उनका धर्णन फरनेको जगह नहीं है । जी । ~ हप परर करने भर्थात्‌ माठको खरीदने, उसे बेचनेकी व्यवस्था करन, दूकान, धमासा, नीकर-चाकर भादि रखनेके यिए्‌ ३ रकमदौ आवर्ययता पड़ती -उसीका नाम पनी ६ । धा चा- टप्‌ जिस रषःमफी अत्यन्त भावरपवता होती टै, पा जिस भब - साधनक विना दा चट ही नदी सकना-उसीका नाम नी है। कि बिना धंेका प्रारम्भ ही नहीं हो सकता 1 यद दान स्पट है कि पनिके ठिए रकम पास न हो हो खर्च किया ही केने जा सकता । एरीदना प्दापारका प्रारर्मिक काम है-मूठनप्य है 1 पदाता इक याद इतना है मुप्य काम सकी रट जाना है दि उस बस्तुक्ो र प्र उपसे सस सदार कुदः दमे टः निकाडा जाप ३ देः त्दीद्नेः दाद्‌ उस्र जो ग हएरानान (प्रई) चरते £ रनम लीप स्दाज, भशर र दवानषन पिराया, गुम रैप -दास-




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