विराट | Virat

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Virat by यशपाल जैन - Yashpal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्दर पुस्तक के पृष्ठों पर भी दृष्टिगोचर होगी । लेकिन झाखिर छाया भी तो प्रकाश से ही उत्पन्न द्ोती दै । जिस व्यक्ति ने उषा श्यौर श्न्धकार, युद्ध तथा शान्ति, डतार व चढाव सभी का झनुभव किया है, केवल उसी के बारे में यद कहा जा सकता है कि वहु दरअसल जीवित रहा दे ।”' ्रपनी इस परिभाषा ॐ श्रनुसार स्टीफन ज्विग ने जीवन को समस्ता था और खूब समका था । मानवीय कमज़ोरियों या त्रुटियों को नहीं, उसकी रचनात्मक शक्ति को ही वे मददत्व देते थे । वे क्ते थे: “वही वास्तव में सच्ची जिन्दगी व्यतीत करता है, जो अपनी जीवन-शक्रित को भावी सन्तान के लिये व्यय कर देता दै श्रौर जो उसे भविष्य को श्रर्पित कर देता दें ।”' स्टीफन उिविग अपनी रचनाओं में विद्यमान हैं । 'विराट' में पाठक उन्द्यों के सात्विक वथा उज्ज्वल रूप का प्रतिबिम्ब देखेंगे--शाकर्षक तथा मनोहर, विनच्र शौर प्रभावशाली । 'कमंण्येवाधिकार रत” के सन्देश को इस खूबो के साथ उपस्थित कर देने वाले उल्ल अमर कलाकार की सेवा मं हमारा सहख बार प्रणाम ! गान्धी भवन, टीकमगढ़ --बचारसीदास चतुर्वेदी १७.-८-७ य




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