बच्चों की शिक्षा | Bacho Ki Shiksha

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वेणी माधव शास्त्री जोशी - Veni madhav Sastri Joshi

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श्री सम्पूर्णानन्द - Shree Sampurnanada

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अपराधी नही, अखस्थ बीसर्वा शताब्दी के प्रारम्भ सें शिक्षासंस्थाश्रों में शिक्षक के लिये कालक की चरर चहली, शिक्षा की ओर ही ध्यान देना आवश्यक समझा जाता था | केवल पाठ्य विषय का ज्ञान श्रौर .विद्वता का ही महत्व था । पर बात अब बदल गई है । यह श्वश्यक नहीं कि जो विद्वान हो वह अच्छा शिक्षक मी हो । श्रनुमव से सिद्ध है कि कमी करी साधारण ज्ञानवाले व्यक्ति भी महान शिक्षक होते हैं, क्योंकि उनके लिये शिक्षा नहीं बालक ही प्रधान विषय होता है । वे पुस्तकों का नहीं बालकों का ही अध्ययन करते है । अब्र जटिलः वालको को सी साधारण बालकों के ही समान शिक्षा दी जा सकती है और उनकी जटिलता अपराध नहीं, शस्वस्थता की हा सुचक मानी जाती हे । हम लोगों कौ प्रचलित धारणा हे, विशेषतया धार्मिक क्षेत्रों की, कि मनुष्य अ्रपूणां है, अज्ञानी है और जब वह जन्म लेता है तमी से उसे ऐसी शिक्षा दी जानी चाहिये कि वह ज्ञानी और पुरयात्मा हो जाय | इस प्रचलित घारणा का पूर्ण प्रभाव शिक्षा-तेत्र में श्र बच्चों के संरक्षकों के ऊपर थी पड़ा है । प्रत्येक पिता और शिक्षक सोचता है कि बच्चा अज्ञान है, उसे ज्ञान के प्रकाश की श्रावश्यकता हे श्रौर इसीका ध्यान रख कर वह उसकी शिक्षा प्रारम्भ




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