श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagvadgita
श्रेणी : पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about सत्यदेव सरस्वती - Satyadev Saraswati
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)झष्याय १ [३]
राजन् ! जिस समय महाराज दुर्योधन पारडबों की सेना को युद्ध के
नियमाजुसार युद्ध-क्तेन मे अख शद से सजित देख कर मन मै. घब
कर मन के माव मन ही में छिपा कर शुरू के पास गया । इस लिये
कि उस के मन में सन्देद था कि कहीं: शुरु द्वोणायाये पाएडवों के
प्रेम के मारे उन में न जामिले । बदद शुरू को अपने पृष्ठम इद् करने
तथा पाएडवों पर उन का फ्रोध उत्पन्न कराने श्र वहकाने के लिये
हा उन के पास गया । उस के दिल में शुरू ड्रोण झोर पितामह
सीष्म की झोर से शड्ढा थी इसी लिये वह छुल-कपठ से युक्क रण्ण
द्ेप की श्ाते करने लगा । ः
पश्येतां पारडपुत्राणामावाये मह्ती चमृम् ।
य हुपदपत्ेय तव शिष्येण धीमता ॥*३॥ ,
अत्र शूरा महेष्वासा भीमाउन समा युधि । ं
युधाना विराट्श्र प्रपदश्च महारथः ॥ ४ ॥
(२)
मा. प०-झाचाये देखो ? पारडु पुत्रों की प्रथल सेना घनी ।
जिस की अलौकिक व्यूह रचना टुपद-खुत द्वारा वना॥ ३॥
योधः अनेको हैं घलुभर, भीम अजुन सम यहां।
”” .... सात्यकिविराट महारंथी त्यों दुपद किस से कम कहाँ॥४॥।
शरद--हे झाचार्य ? आप के शिष्य बुद्धिमान ट्रपद-युत्र श्छ
द्वारा 'व्यूहाकार खड़ी की हुई पारडु-पुत्रों की इस बड़ी भारी तना
को देखिये ॥३॥ इस सेना में बढ़े बड़े धतुप वाल पु मे
भीम भर 'अजुन के सपान बहुत से शरवीर हैं । जेसे सात्यकि तथा
किराट जीर ' मदारणी राना. पद् ॥*४ ॥ ।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...