श्रीमद्भगवद्गीता | Shrimadbhagvadgita

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Shrimadbhagvadgita  by सत्यदेव सरस्वती - Satyadev Saraswati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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झष्याय १ [३] राजन्‌ ! जिस समय महाराज दुर्योधन पारडबों की सेना को युद्ध के नियमाजुसार युद्ध-क्तेन मे अख शद से सजित देख कर मन मै. घब कर मन के माव मन ही में छिपा कर शुरू के पास गया । इस लिये कि उस के मन में सन्देद था कि कहीं: शुरु द्वोणायाये पाएडवों के प्रेम के मारे उन में न जामिले । बदद शुरू को अपने पृष्ठम इद्‌ करने तथा पाएडवों पर उन का फ्रोध उत्पन्न कराने श्र वहकाने के लिये हा उन के पास गया । उस के दिल में शुरू ड्रोण झोर पितामह सीष्म की झोर से शड्ढा थी इसी लिये वह छुल-कपठ से युक्क रण्ण द्ेप की श्ाते करने लगा । ः पश्येतां पारडपुत्राणामावाये मह्ती चमृम्‌ । य हुपदपत्ेय तव शिष्येण धीमता ॥*३॥ , अत्र शूरा महेष्वासा भीमाउन समा युधि । ं युधाना विराट्श्र प्रपदश्च महारथः ॥ ४ ॥ (२) मा. प०-झाचाये देखो ? पारडु पुत्रों की प्रथल सेना घनी । जिस की अलौकिक व्यूह रचना टुपद-खुत द्वारा वना॥ ३॥ योधः अनेको हैं घलुभर, भीम अजुन सम यहां। ”” .... सात्यकिविराट महारंथी त्यों दुपद किस से कम कहाँ॥४॥। शरद--हे झाचार्य ? आप के शिष्य बुद्धिमान ट्रपद-युत्र श्छ द्वारा 'व्यूहाकार खड़ी की हुई पारडु-पुत्रों की इस बड़ी भारी तना को देखिये ॥३॥ इस सेना में बढ़े बड़े धतुप वाल पु मे भीम भर 'अजुन के सपान बहुत से शरवीर हैं । जेसे सात्यकि तथा किराट जीर ' मदारणी राना. पद्‌ ॥*४ ॥ ।




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