विश्व-परिचय | Vishwa-parichaya

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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हजारी प्रसाद द्विवेदी - Hazari Prasad Dwivedi

हजारीप्रसाद द्विवेदी (19 अगस्त 1907 - 19 मई 1979) हिन्दी निबन्धकार, आलोचक और उपन्यासकार थे। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म श्रावण शुक्ल एकादशी संवत् 1964 तदनुसार 19 अगस्त 1907 ई० को उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के 'आरत दुबे का छपरा', ओझवलिया नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम श्री अनमोल द्विवेदी और माता का नाम श्रीमती ज्योतिष्मती था। इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिए प्रसिद्ध था। इनके पिता पं॰ अनमोल द्विवेदी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। द्विवेदी जी के बचपन का नाम वैद्यनाथ द्विवेदी था।

द्विवेदी जी की प्रारंभिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही हुई। उन्होंने 1920 में वसरियापुर के मिडिल स्कूल स

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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` विश्व-परिचय परमाणालोक हमारा सजीव शरीर कदे बोध या समभः की शक्तियों को लेकर पैदा हुआ है, जैसे देखने का बोध, सुनने का बोध, सुघने का बोघ; चखने का बोध और छूने का बोध । इन्हीं को हम अनुभूति कहते हैं। इनके साथ हमारा अच्छा-बुरा लगना और हमारे सुख-दुःख गँथे हुए हैं । हमारी इन अनुभूतियों की सीमा बहुत अधिक नहीं है। हम बहुत थोड़ी दूर तक ही देख सकते हैं और बहुत कम बातें सुन सकते हैं । अन्यान्य बोध-शक्तियों की दौड़ भी बहुत दूर तक नहीं है । इसका मतलब यह दहै कि हम जितनी शक्ति का सम्बल लेकर आये हँ वह्‌ इसी ` हिसा से मिली है कि हम इस पृथ्वी पर अपने प्राण बचा रखें । जिस नक्तत्र से प्रथ्बी का जन्म हुआ है और जिसकी ज्योति इसके प्राणों का पालन कर रही है वह है सूय। इस सूय॑ ने हमारे चारों ओर प्रकाश का पर्दा टाँग दिया है। प्रथ्वी के सिवा इस विश्व में और भी कुछ है; यह बात वह देखने नहीं देता । किन्तु दिन समाप्त होता है; सूरज डूबता है, आलोक का पदां




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