महाकवि पन्त | Mahakavi Pant

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Mahakavi Pant by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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२ युग ओर प्रभाव छायावाद के दो कवि--छायावाद युग के कवियों में से पंत और महादेवी ये दो ही ऐसे कवि हैं, जो आज भी, युगों बीत जाने पर भी, अपनी रचनाओं के द्वारा हिन्दी-साहित्य का भंडार भर रहे हैं । इन दोनों ही कवियों के काव्य में साधना की एक गहरी झलक है । महादेवी आरम्भ से अब तक एक ही पथ की पथिका रही हैं, जव कि “पंत साधना की कई मजिल़े पार चुके हैं। 'गप्त' जी प्राचीनता की दृष्टि से, इनसे भी अधिक पुराने कवि ठहरते हैं । परन्तु, उनके काव्य में, आयु की अधिकता के कारण, कुछ अधिक जडता आगई है। उनकी लेखनी की गति को उनके भाई की अकाल मृत्यु ने वित्कुल ही. रोक दिया है । परन्तु, व्यक्तिगत राग-विराग के वन्घनों से मुक्त ये दोनों कवि माज भी अपनी साहित्य-नाधना में लगे हुए हैं । उनके विचारों में प्रौढ़ता भले ही आती गई है, तो भी उनके लिखने में कुछ ऐसी वात है, जो उन्हें चिर-पुराण और चिर-नवीन का मिटा-जुला रूप बना देती ह्ै। दर्दान' और 'सुन्दर'--यह वात कम महत्व की नहीं है । “पंत” अपने काव्य में कुछ अधिक व्यापक भूमिका पर वदृ टै । उनके काव्य विकास में एक लड़ी या क्रम को खोज निकालना उतना अधिक सम्भव नहीं है, जितना कि महादेवी के काव्य में । “पंत' ने अपने कवि-जीवन के विविध चरणों में विविध युगों का प्रतिनिधित्व किया है । वे जीवन के प्रति खुली दृष्टि लेकर उतना नहीं चले हैं, जितना कि विविध दर्दानों के




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